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भगवती सूत्र-श. ८ उ. १ तीन द्रव्यों के परिणाम
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परिणत होते हैं। और एक द्रव्य विस्त्रसा-परिणत होता है । अथवा एक द्रव्य प्रयोग-परिणत होता है, एक द्रव्य मिश्र-परिणत होता है और एक द्रव्य विस्रसापरिणत होता है।
६५ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि तीन द्रव्य प्रयोग-परिणत होते हैं, तो क्या मनः प्रयोग-परिणत होते हैं, या वचन प्रयोग-परिणत होते हैं, या काय प्रयोगपरिणत होते हैं ?
६५ उत्तर-हे गौतम ! वे मनः प्रयोग-परिणत होते हैं, या वचन प्रयोगपरिणत होते हैं, या काय प्रयोग-परिणत होते है। इस प्रकार एक संयोगी, द्विक संयोगी और त्रिक संयोगी भंग कहना चाहिये।
६६ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि तीन द्रव्य मनः प्रयोग-परिणत होते हैं, तो क्या सत्यमन प्रयोग-परिणत होते हैं, इत्यादि प्रश्न ? '
६६ उत्तर-हे गौतम ! वे तीनों द्रव्य सत्यमनः प्रयोग-परिणत होते हैं, अथवा यावत् असत्या-मृषामनः प्रयोग-परिणत होते हैं । अथवा उनमें से एक द्रव्य सत्यमनः प्रयोग-परिणत होता है और दो द्रव्य मृषामनः प्रयोग-परिणत होते . हैं। इसी प्रकार यहाँ भी द्विक संयोगी और त्रिक संयोगी भंग कहना चाहिये, संस्थान भी इसी प्रकार यावत् एक व्यत्र संस्थापने परिणत होता हैं, एक चतुरस्त्र संस्थानपने परिणत होता है और एक आयत संस्थानपने परिणत होता हैं।
विवेचन-प्रयोग-परिणत आदि तीन पदों के असंयोगी तीन भंग होते हैं और द्विकसंयोगी छह भंग होते हैं, तथा विक-संयोगी एक भंग होता है । इस प्रकार कुल दस भंग होते हैं।
सत्यमनः प्रयोग-परिणत आदि चार पद हैं । इनके असंयोगी (एक-एक) चार भंग होते हैं । द्विक संयोगी बारह भंग होते हैं और त्रिक संयोगी चार भंग होते हैं। ये सभी बीस भंग होते हैं। इसी प्रकार मृषामनः प्रयोग-परिणत के भी कहना चाहिये। इसी प्रकार मृषामनः प्रयोग-परिणत के भी कहना चाहिये । इसी प्रकार वचन प्रयोगपरिणत और काय प्रयोग-परिणत के भी कहना चाहिये।
प्रयोग-परिणत की तरह मिश्र-परिणत के भी भंग कहना चाहिये और इसी रीति से वर्णादि के भेद से विस्रसा-परिणत के भी भंग कहना चाहिये ।
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