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________________ भगवती मूत्र-ग. ८ उ. १ एक द्रव्य परिणाम १२६१ । काय-योग द्वारा भाषा-द्रव्य को ग्रहण करके वचन-योग द्वारा भाषारूप में परिणत करके बाहर निकाले जाने वाले पुद्गल 'वचन प्रयोग-परिणन' कहलाते हैं । औदारिक आदि काय-योग द्वारा ग्रहण किये हुए औदारिकादि वर्गणाद्रव्य को औदारिकादि शरीररूप से परिणमाए हुए पुद्गल 'काय-योग परिणत' कहलाते हैं । जीव हिंसा को 'आरम्भ' कहते हैं । हिंसा में मनःप्रयोग द्वारा परिणत पुद्गल 'आरम्म सत्य-मनः प्रयोग-परिणत' कहलाते हैं । इसी तरह दूसरों के स्वरूप को भी समझलेना चाहिये, परन्तु इतनी विशेषता है कि जीव हिंसा के अभाव को 'अनारम्भ' कहते हैं । किसी जीव को मारने के लिये मानसिक संकल्प करना 'सारम्भ' (संरम्भ) कहलाता है । जीवों को परिताप उपजाना 'समारम्म' कहालाता है। जीवों को प्राण से रहित कर देना 'आरम्भ' कहलाता है। ३४ प्रश्न-जई कायप्पयोगपरिणए कि ओरालियसरीरकायप्पयोगपरिणए, ओरालियमीसासरीरकायप्पयोगपरिणए, वेब्विय सरीरकायप्पयोगपरिणए वेउब्बियमीसासरीरकायप्पयोगपरिणए, आहारगसरीरकायप्पयोगपरिणए, आहारगमीसासरीरकायप्पयोगपरिणए, कम्मासरीरकायप्पयोगपरिणए ? _____३४ उत्तर-गोयमा ! ओरालियसरीरकायप्पयोगपरिणए वा, जाव कम्मासरीरकायप्पयोगपरिणए वा।। ३५ प्रश्न-जइ ओरालियसरीरकायप्पयोगपरिणए किं एगिदिय ओरालियसरीरकायापयोगपरिणए, एवं जाव पंचिंदियओरालिय जाव परिणए ? . ३५ उत्तर-गोयमा ! एगिदियओरालियसरीरकायप्पयोगपरि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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