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________________ १२१६ भगवती मूत्र-ग. ७ उ. १० कालोदायो को नन्वचर्चा और प्रत्रज्या जेटे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयमगोत्ते णं, एवं जहा वितियसए नियंठुद्देसए जाव भिक्खायरियाए अडमाणे अहापजत्तं भत्त-पाणं पडिग्गाहित्ता रायगिहाओ णगराओ जाव अतुरियं, अचवलं, असंभंतं जाव रियं सोहेमाणे सोहेमाणे तेमि अण्णउत्थियाणं अदूरसामंतेणं वीइवयइ । तए णं ते अण्णउत्थिया भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं वीइवयमाणं पासंति, पासेत्ता अण्णमण्णं सदावेंति, अण्णमण्णं सदावेत्ता एवं वयासी-"एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे इमा कहा अविप्पकडा, अयं च णं गोयमे अम्हं अदूरसामंतेणं वीईवयइ, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं गोयमं एयमढे पुच्छित्तए" त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमढें पडिमुणंति, एयं अटुं पडिसुणिता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयामी कठिन शब्दार्थ-बीइवयमाणं-जाते हुए, अविप्पकडा-अप्रकट (अज्ञात) । भावार्य-उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी गुणशील चंत्य (उदयान) में यावत् पधारे । यावत् परिषद् वापिस चली गई। उस काल उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतम गौत्री इन्द्र भूति नामक अनगार, दूसरे शतक के निर्ग्रन्योद्देशक में कहे अनुमार भिसाचर्या के लिये घूमते हुए यथा-पर्याप्त आहार-पानी ग्रहण करके राजगृह नगर से त्वरा रहित, चपलता रहित, संभ्रान्तता रहित, ईर्या समिति का शोधन करते हुए, अन्यतीथिकों से थोडी दूर होकर निकले । तब अन्यतीथिकों ने भगवान गौतम को थोरी दूरी से जाते हुए देखा और एक दूसरे से परस्पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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