________________
भगवती मूत्र-श. ७ उ. ५ रथ ममल मंग्राम
१२११
य पासित्ता य बहुजणो अण्णमण्णस्म एवं आइक्खड़, जाव परूवेइ एवं खलु देवाणुप्पिया ! वहवे मणुस्सा जाव उववत्तारो भवंति ।
कठिन शब्दार्थ-पियबालवयंसए-प्रिय बाल मित्र, पडिणिक्खममाणं-निकलते हुए, अहासणिहिएहि--निकट रहने वाले, दसद्धवणे--पांच वर्ण के, णिवाइए-डाले, गीयगंधव गिणाए--गीत गन्धर्व नाद किया।
भावार्थ- उस वरुणनागनत्तुआ का एक प्रिय बाल-मित्र भी रथमूसल संग्राम में युद्ध करता था। वह भी एक पुरुष द्वारा घायल हुआ और शक्ति रहित, बल रहित, वीर्य रहित बने हुए उसने सोचा-'अब मेरा शरीर टिक नहीं सकेगा, उसने वरुणनागनत्तुआ को युद्ध-स्थल से बाहर निकलते हुए देखा । वह भी अपने रथ को वापिस फिराकर रथ-मसल संग्राम से बाहर निकला और जहाँ वरुण-नागनत्तुआ था, वहां आकर घोडों को रथ से खोल कर विजित कर दिया। फिर वस्त्र का संथारा बिछाकर उस पर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठा और दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार बोला-'हे भगवन् ! मेरे प्रिय बालमित्र वरुण-नागनत्तुआ के जो शीलवत, गुणवत, विरमण व्रत, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास हैं, वे सब मुझे भी होवें'--ऐसा कहकर उसने कवच खोला। शरीर में लगे हुए बाण को बाहर निकाला और अनुक्रम से वह भी काल-धर्म को प्राप्त हो गया।
___ वरुण-नागनत्तुआ को काल-धर्म प्राप्त हुआ जानकर निकट रहे हुए वाणव्यन्तर देवों ने उस पर सुगन्धित जल की वृष्टि की, पाँच वर्ण के फूल बरसाये और गीत एवं गन्धर्व-नाद किया। उस वरुण-नागनत्तुआ को द्विव्य देवऋद्धि, द्विव्य देव-धुति और द्विव्य देव प्रभाव को सुनकर और देखकर बहुत से मनुष्य परस्पर इस प्रकार कहने लगे यावत् प्ररूपणा करने लगे कि 'हे देवानप्रियों ! जो संग्राम करते हए मरते हैं, वे देवलोक में उत्पन्न होते हैं।'
• १४ प्रश्न-वरुणे णं भंते ! णागणत्तुए कालमासे कालं किच्चा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org