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भगवती सूत्र-श. ७ उ. ९ रथमूसल संग्राम
ऐसा किस प्रकार हो सकता है ?
१३ उत्तर-हे गौतम ! बहुत से मनुष्य जो इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि संग्राम में मारे हुए मनुष्य, देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हूँ,उस काल उस समय में वैशाली नाम की नगरी थी। उसमें वरुण-नागनत्तुआ (नाग नामक पुरुष का 'वरुण' नामक पौत्र या दोहित्र) रहता था। वह धनाढय यावत् किसी से पराभूत न हो सके-ऐसा समर्थ था। वह श्रमणोपासक था और जीवाजीवावि तत्त्वों का ज्ञाता था, यावत् वह आहारादि द्वारा श्रमण निग्रन्थों को प्रतिलाभित करता हुआ एवं निरन्तर छठ-छठ की तपस्या द्वारा अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरता था।
तएणं से वरुणे णागणए अण्णया कयाई रायाभिओगेणं, गणाभिओगेणं, बलाभिओगेणं रहमुसले संगामे आणत्ते समाणे छठभत्तिए अट्ठमभत्तं अणुवट्टेइ, अणुवट्टित्ता कोडंवियपुरिसे सदावेइ, सदावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठावेह, हय-गयरह० जाव सण्णाहेत्ता मम एवं आणत्तियं पञ्चप्पिणह । तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सच्छत्तं सज्झयं जाव उवट्ठावेंति, हय-गय-रह० जाव सण्णाहेंति, सण्णाहित्ता जेणेव वरुणे णागणत्तुए, जाव पच्चप्पिणंति । तएणं से वरुणे णागणत्तुए जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ, जहा कूणिओ, जाव-पायच्छित्ते, सव्वालंकारविभूसिए,
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