________________
११९८
भगवती सूत्र-श. ७ उ. ९ महाशिला-कंटक संग्राम
.
तैयार हो जाइये।"
चेड़ा राजा के पास पहुंच कर दूत ने कोणिक राजा का सन्देश कह सुनाया । चड़ा राजा ने कहा-"यदि कोणिक अनीतिपूर्वक युद्ध करने को तैयार हो गया है, तो नीति को रक्षा के लिये मैं भी युद्ध करने को तैयार हूँ।"
. दूत ने जाकर कोणिक राजा को उपरोक्त बात कह सुनाई। तत्पश्चात् कोणिक ने काल, सुकाल आदि दस भाईयों को बुलाकर कहा-"तुम सब अपने-अपने राज्य में जाकर अपनी-अपनी सेना लेकर शीघ्र आओ।" कोणिक राजा की आज्ञा को सुनकर दसों भाई अपने-अपने राज्य में गये और सेना लेकर वापिस कोणिक की सेवा में उपस्थित हुए। कोणिक भी अपनी सेना को सज्जित कर तैयार हुआ। फिर वे सभी विशाल नगरी पर चढ़ाई करने के लिये रवाना हुए। उनकी सेना में तेतीस हजार हाथी, तेतीस हजार घोड़े, तेतीस हजार रथ और तेतीस करोड़ पैदल सैनिक थे।
___ इधर चेड़ा राजा ने अपने धर्ममित्र काशी देश के नव मल्लि वंश के राजाओं को और कोशल देश के नव लच्छि वंश के राजाओं को बुलाया और विहल्लकुमार विषयक सारी हकीकत कही । चेड़ा राजा ने कहा-"भूपतियों ! कोणिक राजा मेरी न्याय संगत बात की अवहेलना करके अपनी चतुरंगिणी सेना को लेकर युद्ध करने के लिये यहाँ आ रहा है । अब आप लोगों की क्या सम्मति है ? क्या विहल्ल कुमार को वापिस भेज दिया जाय, या युद्ध किया जाय ?" सभी राजाओं ने एक-मत होकर उत्तर दिया-"मित्र ! हम क्षत्रिय हैं । शरणागत की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है । विहल्ल कुमार का पक्ष न्याय संगत है और वह हमारी शरण में आ चुका है इसलिये हम इसे कोणिक के पास नहीं भेज सकते।"
उनका कथन सुनकर चेड़ा राजा ने कहा-"जब आप लोगों का यही निश्चय है, तो आप लोग अपनी-अपनी सेना लेकर वापिस शीघ्र आइये ।" तत्पश्चात् वे अपने-अपने राज्य में गये और सेना लेकर वापिस चेड़ा राजा के पास आये चेड़ा राजा भी तैयार हो गया । उन उन्नीस राजाओं की सेना में सत्तावन हजार हाथी, सत्तावन हजार घोड़े, सत्तावन हजार रथ और सत्तावन करोड़ पदाति थे ।
दोनों ओर की सेनाएँ युद्ध में आ डटीं । घोर संग्राम होने लगा। चेड़ा राजा का ऐसा नियम था कि वे एक दिन में एक बार बाण छोड़ते थे। उनका बाण अमोघ था, वह कभी निष्फल नहीं जाता था। पहले दिन कोणिक का भाई कालकुमार सेनापति
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org