SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. ७ उ. ९ महाशिला-कंटक संग्राम ११९७ उसकी क्रीड़ाओं को देखकर लोग कहने लगे कि "वास्तव में राज्यश्री का उपभोग तो विहरूलकुमार करता है।" जब यह बात कोणिक की रानी पमावती ने सुनी, तो उसके हृदय में ईर्षा उत्पन्न हई। वह सोचने लगी-यदि हमारे पास सेचानक गन्ध हस्ती नहीं है,तो यह राज्य हमारे किस काम का ? इसलिये विहल्ल कुमार से सेचानक गन्ध हस्ती अपने यहां मंगा लेने के लिये में राजा कोणिक से प्रार्थना करूंगी। तदनुसार उसने अपनी इच्छा राजा कोणिक के सामने प्रकट की। रानी की बात सुनकर पहले तो राजा ने उसकी बात को टाल दिया, किंतु उसके बार-बार कहने पर राजा के हृदय में भी यह बात जंच गई । उसने विहल्लकुमार से हार और हाथी मांगे। विहल्लकुमार ने कहा-यदि आप हार और हाथी लेना चाहते हैं, तो मेरे हिस्से का राज्य मुझे दे दीजिये । विहल्लकुम्गर की न्याय संगत बात पर कोणिक ने कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु हार और हाथी बार-बार मांगता रहा । इस पर से विहल्लकुमार को ऐसा विचार उत्पन्न हुअा कि 'कदाचित् कोणिक यह हार, हाथी मुझ से बरबस छीन लेगा।' अतः वह हार और हाथी को लेकर अपने अन्तःपुर सहित विशाला नगरी में अपने नाना चेड़ा राजा की शरण में चला गया। तत्पश्चात् राजा कोणिक ने अपने नाना चेड़ा राजा के पास दूत द्वारा यह सन्देशा भेजा कि "विहल्लकुमार मुझे पूछे बिना ही.सेचानक हाथी और वंकचूड़ हार लेकर आपके पास चला आया है। इसलिये उसे मेरे पास बापिस शीघ्र भेज दीजिये ।' . विशाला नगरी में जाकर दूत, चेड़ा राजा की सेवा में उपस्थित हुआ। उसने राजा कोणिक का सन्देश कह सुनाया। चेड़ा राजा ने दूत से कहा-"तुम. कोणिक से कहना कि जिस प्रकार तुम श्रेणिक के पुत्र, चेलना के अंगजात और मेरे दोहित्र हो, उसी प्रकार विहल्लकुमार भी श्रेणिक का पुत्र, चेलना का अंगजात और मेरा दोहित्र है। श्रेणिक राजा जब जीवित थे, तब उन्होंने यह हार और हाथी, विहल्लकुमार को दे दिया था। यदि अब तुम .उन्हें लेना चाहते हो, तो विहल्लकुमार को अपने राज्य का हिस्सा दे दो।" ..दूत ने जाकर यह बात कोणिक राजा से कही । कोणिक राजा ने दूसरा दूत भेज कर चेटक राजा को निवेदन करवाया कि राज्य में उत्पन्न हुई सब श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वामी राजा होता है । हार और हाथी भी राज्य में उत्पन्न हुए हैं । इसलिये उन पर मेरा अधिकार है । वे मेरे ही भोग में आने चाहिये ।" चेड़ाराजा ने दूत को पुनः वही उत्तर देकर सम्मान सहित विसर्जित किया । तब कोणिक राजा ने तीसरा दूत भेजकर कहलवाया-"या तो आप हार हाथी सहित विहल्ल कुमार को मेरे पास भेज दीजिये, अन्यथा युद्ध के लिये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy