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भगवती
सूत्र - . ३ उ. १ ईशानेन्द्र का पूर्व भव
तेत्ता, तं मित्त-णाइ-णियग-संबंधिपरियणं विउलेणं असण-पाणखाइम-साइमेणं, वत्थ-गंध- मल्ला-लंकारेण य सकारेत्ता, सम्मात्ता तस्लेव मित-गाइ-णियग-संबंधि-परियणस्स पुरओ जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेत्ता, तं मित्त-णाइ-णियग-संबंधि-परियणं, जेट्टपुत्तं च आपुच्छित्ता सयमेव दारुमयं पडिग्गहं गहाय मुंडे भवित्ता पाणामाए पव्वज्जाए पव्वइत्तए, पव्वइए वि य णं समाणे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिहिस्सामि - कप्पड़ मे जावज्जीवाए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उडूढं बाहाओ पगिज्झिय पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स विहरित्तए, छट्टस्स वियणं पारणंसि आयावणभूमीओ पचोरुहित्ता सयमेव दारुमयं पडिग्गहं गहाय तामलित्तीए नयरीए उच्च णीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्ता सुद्धोदणं पडिगाहेत्ता, तं तिसत्तक्खुत्तो उदरणं पक्खालेत्ता तओ पच्छा आहारं आहा रित्तए' त्ति कट्टु एवं संपेes |
कठिन शब्दार्थ - उवेहमाणे - उपेक्षा करता हुआ, आढाइ आदर करते, दारुमयंलकड़ी का बना हुआ, पडिग्गहं-प्रतिग्रहइ-पात्र, उवक्खडावेत्ता - तैयार करवा कर आमंतेत्ता - बुलाकर, पुरओ-समक्ष, पाणामाए पव्वज्जाए - प्राणामा नामक प्रव्रज्या से, अभिग्गहंअभिग्रह - प्रतिज्ञा विशेष, अणिक्खित्तेणं- निरंतर - बिना रुके, परिज्झय ग्रहण करके, तिसतक्खुत्तो इक्कीस बार, संपेहेइ - विचार करके ।
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भावार्थ- पूर्वकृत, सुआचरित, यावत् पुराने कर्मों का नाश हो रहा है, इस बात को देखता हुआ भी यदि में उपेक्षा करता रहूं अर्थात् भविष्यत् कालीन
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