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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ ईशानेन्द्र का पूर्व भव
इहेव जंबूदीवे दीवे, भारहे वासे, तामलित्ती नामं णयरी होत्था । (वण्णओ०) तत्थ णं तामलित्तीए णयरीए तामली णामं मोरियपुत्ते गाहावई होत्था, अड्ढे, दित्ते, जाव-बहुजणस्स अपरिभूए या वि होत्या, तए णं तस्स मोरियपुत्तस्स तामलिस्स गाहावइस्स अण्णया कयाइं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए, जाव-समुप्पजित्था, अस्थि ता मे पुरा पोराणाणं, सुचिण्णाणं, सुपरिवकंताणं, सुभाणं कल्लाणाणं, कडाणं कम्माणं कल्लाणफलवित्तिविसेसो, जेणाहं हिरण्णेणं वड्ढामि, सुवण्णेणं वड्ढामि, धणेणं वड्ढामि, धण्णेणं वड्ढामि, पुत्तेहिं वढामि पसूहि वढामि, विपुलधण-कणगरयण-मणि-मोत्तिय संख-सिलप्पवाल-रत्तरयण-संतसारसावएजेणं अईव अईव अभिवड्ढामि ।
कठिन शब्दार्थ-एस-यह, आसि-था, कयरंसि-किस, दच्चा-दिया, मोच्चा-खाया, किच्चा-किया, समायरित्ता-आचरण किया, पुव्यरत्तावरत्तकालसमयंसि-पूर्वरात्राऽपररात्रकाल समये-पिछली रात्रि में, अज्झथिए-आध्यात्मिक-संकल्प, सुचिण्णाणं-उत्तम आचार पाल कर, सुपरिक्कंताणं-अच्छे पराक्रम से, कल्लाणफलवित्तिविसेसो-कल्याणकारी फल विशेष, वड्डामि-बढ़ रहा है।
'भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान को वह दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवप्रभाव किस प्रकार लब्ध हुआ, प्राप्त हआ और अभिसमन्वागत हुआ (सम्मुख आया) ? यह ईशानेन्द्र पूर्वभव में कौन था ? उसका नाम और गोत्र क्या था ? वह किस ग्राम, नगर यावत् सन्निवेश में रहता था ? उसने क्या सुना ? क्या दिया ? क्या खाया ? क्या किया ? क्या आचरण किया ? किस तथारूप के श्रमण या माहन के पास एक
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