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________________ भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ ईशानेन्द्र का भगवद् वंदन , १५ उत्तर-हे गौतम ! वह दिव्य देवऋद्धि शरीर में गई, और शरीर में ही प्रविष्ट हुई। ____ १६ प्रश्न-हे. भगवन् ! वह दिव्य देवऋद्धि शरीर में गई और शरीर में प्रविष्ट हुई, ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? १६ उत्तर-हे गौतम ! जैसे कोई कूडागार (कूटाकार) शाला हो, जो कि दोनों तरफ से लिपी हुई हो, गुप्त हो, गुप्तद्वार वाली हो, पवन रहित हो, पवन के प्रवेश से रहित . गम्भीर हो । ऐसी फूटाकारशाला का दृष्टान्त यहाँ कहना चाहिए। ___ विवेचन-इस चालू प्रकरण में इन्द्रों की वैक्रिय शक्ति, तेजोलेश्या आदि का वर्णन किया गया है। एक समय दूसरे देवलोक का अधिपति देवेन्द्र देवराज ईशान, भगवान् की सेवा में आया और उसने बत्तीस प्रकार के नाटक बतलाये। जिसके लिए रायपसेणीय सूत्र में वर्णित सूर्याभदेव की वक्तव्यता की भलामण दी गई है । उसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार हैसुधर्मा सभा के ईशान नाम के सिंहासन पर बैठा हुआ देवन्द्र देवराज ईशान, महा अखण्ड नाटकों आदि के शब्दों द्वारा दिव्य और भोगने योग्य भोगों को भोगता हुआ रहता है। वह ईशानेन्द्र वहाँ अकेला नहीं है, किन्तु परिवार सहित है । उसका परिवार इस प्रकार है-अस्सी हजार सामानिक देव, चार लोकपाल, परिवार सहित आठ अग्रमहिषियां, सात सेना, सात सेनाधिपति, तीन लाख बीस हजार आत्मरक्षक देव और अनेक वैमानिक देव तथा देवियाँ । इस प्रकार के परिवार से वह ईशानेन्द्र परिवृत्त है। एक समय उस ईशानेन्द्र ने अपने अवधिज्ञान के द्वारा जम्बूद्वीप को देखा और देखते ही श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को राजगृह नगर में पधारे हुए देखा । भगवान् को देखते ही वह इन्द्र, एकदम अपने आसन से उठा, उठकर सात आठ कदम तीर्थङ्कर भगवान् के सामने गया, फिर दोनों हाथ जोड़कर भगवान् को वन्दना नमस्कार किया। इसके बाद अपने आभियोगिक देवों को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रियों ! तुम राजगृह नगर में जाओ वहां श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार करो। इसके बाद एक योजन जितने विशाल क्षेत्र को साफ करो। यह कार्य करके मुझे वापिस शीघ्र सूचित करो।" इन्द्र की आज्ञा पाकर उन आभियोगिक देवों ने वह सारा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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