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________________ १०२४ भगवती सूत्र -श. ६ उ ६ पृथ्वियाँ और अनुत्तर विमान शतक उद्देशक ६ पृथ्वियाँ और अनुत्तर विमान णं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ ? १ प्रश्न - क १ उत्तर - गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - रयणपभा, जाव- तमतमा; रयणप्पभाईणं आवासा भाणिय अहे सत्तमाए, एवं जे जत्तिया आवासा ते भाणियव्वा जाव । २ प्रश्न - क णं भंते ! अणुत्तरविमाणा पण्णत्ता ? : जाव , २ उत्तर - गोयमा ! पंच अणुत्तरविमाणा पण्णत्ताः तं जहाविजए, जाव - सव्वसिदधे । " कठिन शब्दार्थ आवासा - आवास, जत्तिया - जितने । भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! कितनी पृथ्वियाँ कही गई हैं ? १ उत्तर - हे गौतम ! सात पृथ्वियाँ कही गई है। यथा-रत्नप्रभा यावत् तमस्तमःप्रभा । रत्नप्रभा पृथ्वी से लेकर यावत् अधः सप्तम ( तमस्तमः प्रभा ) तक जिस पृथ्वी के जितने आवास हों, उतने कहने चाहिए यावत् । २ प्रश्न - हे भगवन् ! कितने अनुत्तर विमान कहे गये हैं । २ उत्तर - हे गौतम! पांच अनुत्तर विमान कहे गये हैं । यथा - विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध विमान । विवेचन - पांचवें उद्देशक में विमानों की वक्तव्यता कही गई है। अब इस छठे उद्देशक में भी इसी तरह की वक्तव्यता कही जाती है । यहाँ पर 'पृथ्वी' शब्द से रत्नप्रभा आदि सात पृथ्वियों का ही ग्रहण किया गया है। यहाँ आठवीं ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी का ग्रहण नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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