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________________ १०२० भगवती सूत्र – ग. ६ उ. ५ लोकान्तिक देव वण्ही-वरुणाणं देवाणं चउद्दस देवा, चउद्दस देवसहस्सा परिवारो पण्णतो; गहतोय-तुसियाणं देवाणं मत्त देवा, सत्त देवसहस्मा परिवारो पण्णत्तो; अवसेसाणं णव देवा, णव देवसया परिवारो. पण्णत्तो। पढम-जुगलम्मि सत्तओ सयाणि बीयम्मि चउद्दससहस्मा, . तइए सत्तसहस्सा णव चेव सयाणि सेमेसु । कठिन शब्दार्थ-उवासंतरेसु-अवकाशान्तर में, जहाणपुटवीए---यथानुपूर्वीकक्रमानुसार, परिवाडौए-परिपाटी से-क्रम से। भावार्थ-इन उपरोक्त आठ कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान हैं । यथा-१ अचि, २ अचिमाली, ३ वैरोचन, ४ प्रभंकर, ५ चन्द्राभ, ६ सूर्याभ, ७ शुक्राभ और ८ सुप्रतिष्टाभ । इन सब के बीच में रिष्टाभ विमान है। ३६ प्रश्न-हे भगवन् ! अचि विमान कहाँ है ? ३६ उत्तर-हे गौतम ! अचिविमान उत्तर और पूर्व के बीच में है । ३७ प्रश्न-हे भगवन् ! अचिमाली विमान कहाँ है ? ३७ उत्तर-हे गौतम ! अचिमाली विमान पूर्व में है। इसी क्रम से सब विमानों के लिए कहना चाहिए। ३८ प्रश्न-हे भगवन् ! रिष्ट विमान कहाँ है ? ___३८ उत्तर-हे गौतम ! बहुमध्य भाग में अर्थात् सब के मध्य में रिष्ट विमान है । इन आठ लोकान्तिक विमानों में आठ जाति के लोकान्तिक देव रहते हैं । यथा-१ सारस्वत, २ आदित्य, ३ वह्नि, ४ वरुण, ५ गर्दतोय, ६ तुषित, ७ अव्याबाध और ८ आग्नेय । सब के बीच में रिष्ट देव है। ३९ प्रश्न-हे भगवन् ! सारस्वत देव कहाँ रहते है ? ३९ उत्तर-हे गौतम ! सारस्वत जाति के देव, अचि विमान में रहते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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