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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ५ तमस्काय
१७ प्रश्न-हे भगवन् ! तमस्काय के कितने नाम कहे गये हैं ?
१७ उत्तर-हे गौतम ! तमस्काय के तेरह नाम कहे गये हैं। यथा१ तम, २ तमस्काय, ३ अन्धकार, ४ महान्धकार, ५ लोकान्धकार, ६ लोकतमित्र, ७ देवान्धकार, ८ देवतमिस्र, ९ देवारण्य, १० देवव्यूह, ११ देवपरिघ, १२ देवप्रतिक्षोभ, १३ अरुणोदक समुद्र ।
१८ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या तमस्काय, पृथ्वी का परिणाम है, पानी का परिणाम है, जीव का परिणाम है, या पुद्गल का परिणाम है ?
१८ उत्तर-हे गौतम ! तमस्काय, पृथ्वी का परिणाम नहीं है, पानी का परिणाम भी है, जीव का परिणाम भी है और पुद्गल का परिणाम भी है।
१९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, पृथ्वी. कायरूप से यावत् त्रसकायरूप से तमस्काय में पहले उत्पन्न हो चुके हैं ?
१९ उत्तर-हां, गौतम ! सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, तमस्काय में पृथ्वीकाय रूप से यावत् त्रसकाय रूप से अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुके हैं। किन्तु बादर पृथ्वीकाय रूप से और बादर अग्निकाय रूप से उत्पन्न नहीं हुए हैं।
विवेचनतमस्काय के तेरह नाम कहे गये हैं, वे सब सार्थक हैं। उनकी सार्थकता इस प्रकार है-१ तमः-अन्धकार रूप होने से इसे 'तमः' कहते हैं । २ अन्धकार का समह रूप होने से इसे 'तमस्काय' कहते हैं । ३तमः अर्थात् अन्धकार रूप होने से इसे 'अन्धकार' कहने हैं। ४ महातमः रूप होने से इसे 'महा अन्धकार' कहते हैं। ५-६ लोक में इस प्रकार का दुसरा अन्धकार न होने से इसे 'लोकान्धकार' और 'लोक मिस्र' कहते हैं। ७-८ तमस्काय में किसी प्रकार का उद्योत न होने से वह देवों के लिए भी अन्धकार रूप है, इसलिए इसे 'देव अन्धकार' और 'देवतमिस्र' कहते हैं । ९ बलवान् देवता के भय से भागते हुए देवता के लिए यह एक प्रकार के अरण्य (जंगल) रूप होने से यह शरणभूत है, इसलिए इसको 'देवारण्य' कहते हैं । १० जिस प्रकार चक्रव्यूह का भेदम करना कठिन होता है. उसी प्रकार यह तमस्काय देवों के लिए भी दुर्भेद्य है, उसका पार करना कठिन हैं, इसलिए इसको देवव्यूह' कहते हैं। ११ तमस्काय को देख कर देवता भी भयभीत हो जाते है, इसलिए वह उनके
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