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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. १ शकेन्द्र की ऋद्धि तं चैव एवं सामाणिय-तायत्तीसग-लोगपाल-अग्गमहिसीणं, जाव एम णं गोयमा ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो एवं एगमेगाए अग्गमहिसीए देवीए अयमेयारूवे विसए, विसयमेत्ते बुझए, नो चेवणं संपत्तीए विउव्विंसु वा, विउव्वंति वा, विउब्विस्संति वा । एवं सणकुमारेवि, नवरं - चत्तारि केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे, अदुत्तरं च णं तिरियमसंखेज्जे, एवं सामाणिय-तायत्तीस- लोगपालअग्गमहिसीणं असंखेज्जे दीव-समुद्दे सव्वे विउव्वंति, सणकुमाराओ आरद्धा उवरिल्ला लोगपाला सव्वे वि असंखेज्जे दीव-समुद्दे विउव्वंति, एवं माहिंदे वि नवरं - सातिरेगे चत्तारि केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे, एवं बंभलोए वि, नवरं - अट्ठ केवलकप्पे, एवं लंतए वि, नवरं साइरेगे अलकप्पे, महासुक्के सोलस केवलकप्पे, सहस्सारे साइरेगे सोलस, एवं पाणए वि, नवरं बत्तीसं केवलकप्पे, एवं अच्चुए वि, नवरं साइरेगे बत्तीसं केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे, अण्णः तं चैव । सेवं भंते! सेवं भंते! ति तच्चे गोयमे वाउभूई अणगारे समणं - भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, जाव - विहरइ । ५६३ कठिन शब्दार्थ-पगिज्झिय - ग्रहण करके, सूराभिमुहे - सूर्य की तरफ मुख करके, आवणभूमि- आतापन भूमि में आयावेयाणे - आतापना लेते हुए, आरद्धा उवरिल्ला से लेकर ऊपर के, अण्णं - अन्य सब । Jain Education International भावार्थ - १४ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि देवेन्द्र देवराज ईशान ऐसी महा ऋद्धि वाला है, यावत् इतना वैक्रिय करने की शक्ति वाला है, तो प्रकृति से भद्र For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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