________________
५६२
भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ कुरुदत्त देव की ऋद्धि
वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण दो जम्बूद्वीप से कुछ अधिक स्थल को भर देता है । बाकी सारा वर्णन पहले की तरह जानना चाहिए ।
विवेचन-यहाँ ईशानेन्द्र के प्रकरण को शकेन्द्र के प्रकरण के समान बतलाया है । इसका कारण यह है कि शक्रेन्द्र के प्रकरण में कही हुई बहुत सी बातों के साथ ईशानेन्द्र के प्रकरण में कही हुई बहुतसी बातों की समानता है, जो विशेषता है वह इस प्रकार है । ईशानेन्द्र के अट्ठाईस लाख विमान, अस्सी हजार सामानिक देव और तीन लाख बीस हजार आत्मरक्षक देव हैं।
कुरुदत्तपुत्र अनगार आदि की ऋद्धि
१४ प्रश्न-जइ णं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया एमहिड्डीए, जाव-एवइयं च णं पभू विउवित्तए, एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कुरुदत्तपुत्ते नामं अणगारे पगइभद्दए, जाव-विणीए, अट्ठमंअट्ठः मेणं अणिक्खितेणं पारणए आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ पगिझिय पगिज्झिय सूराभिभहे आयावणभूमिए आयावेमाणे बहुपडिपुण्णे छम्मासे सामण्णरियाणं पाउणित्ता। अद्धमासिआए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, तीसं भत्ताई अणसणाई छेदित्ता, आलोइयपडिक्कते, समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे सयंसि विमाणंसि, जा तीसए वत्तव्वया सा सव्वेव अपरिसेसा कुरुदत्तपुत्ते ?
१४ उत्तर-नवरं साइरेगे दो केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे, अवसेसं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org