________________
९६८
भगवती सूत्र
- श. ६ उ. ३ कर्मों के बंधक
बन्ध, सुयणाणी, ओहिणाणी, मणपज्जवणाणी, केवलणाणी० ? २६ उत्तर - गोयमा ! हेट्ठिल्ला चत्तारि भयणाए, केवलणाणी ण बन्धइ, एवं वेयणिज्जवज्जाओ सत्त वि, वेयणिज्जं हेट्ठिल्ला चत्तारि बन्धंति, केवलणाणी भयणाए ।
२७ प्रश्न - णाणावरणिजं किं महअण्णाणी बन्धइ, सुयअण्णाणी बन्ध, विभंगणाणी बन्धइ ?
२७ उत्तर - गोयमा ! आउयवज्जाओ सत्त वि बन्धंति, आउयं भयणाए ।
कठिन शब्दार्थ- पज्जतओ - जिस जीव ने उत्पन्न होने के बाद अपने योग्य आहार, शरीर आदि पर्याप्ति पूर्ण करली हो, अपज्जत्तए - जिसने उत्पन्न होकर भी अपने योग्य पर्याप्त पूर्ण नहीं की हो, भासए - भाषक - बोलने वाला, परिते - प्रत्येक शरीर २ अल्प संसारी, णोपरित णोअपरित-सिद्ध जीव, आभिणिबोहियणाणी - मतिज्ञानी ।
भावार्थ - २३ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीय कर्म को पर्याप्तक जीव बांधता है, अपर्याप्तक जीव बांधता है, या नोपर्याप्तक नोअपर्याप्तक जीव बांधता है ?
Jain Education International
२३ उत्तर - हे गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म को पर्याप्तक जीव, कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है। अपर्याप्तक जीव बांधता है। नोपर्याप्त नोअपर्याप्तक जीव नहीं बांधता है। इस प्रकार आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष सात कर्म प्रकृतियों के विषय में कहना चाहिये । आयुष्य कर्म को पर्याप्तक जीव धौर अपर्याप्तक जीव कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है । नोपर्याप्तक नोअपर्याप्तक जीव नहीं बांधता है ।
२४ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीय कर्म को भाषक जीय बांधता या अभाषक जीव बांधता हैं ?
है,
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org