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९५८ भगवती सूत्र--श.. ६ उ. ३ कर्म और उनकी स्थिति wimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
कठिन शब्दार्थ-जहणेणं-जघन्य-कम से कम, अबाहा-अबाधाकाल, अबाणियाअबाधा काल कम करके, कम्मनिसेओ-कर्मनिषक ।
भावार्थ-१४ प्रश्न-हे भगवन् ! कर्म प्रकृतियां कितनी है ? .
१४ उत्तर-हे गौतम ! कर्म प्रकृतियां आठ हैं । यथा-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय यावत् अन्तराय ।
१५ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म की बंध स्थिति कितने काल की कही गई है ?
१५ उत्तर-हे गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म को बंध स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। तीन हजार वर्ष का अबाधा काल है । अबाधा काल जितनी स्थिति को कम करने पर शेष कर्म स्थिति-कर्म-निषेक है। इसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म के विषय में भी जानना चाहिये । वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति दो समय की है और उत्कृष्ट स्थिति ज्ञानावरणीय कर्म के समान जाननी चाहिये । मोहनीय कर्म को बंध स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सित्तर कोडाकोडी सागरोपम को है । सात हजार वर्ष का अबाधा काल है । अबाधा काल की स्थिति को कम करने से शेष कर्म ' स्थिति-कर्म-निषेक काल जानना चाहिये । आयुष्य कर्म को बंध स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट पूर्व कोटि के तीसरे माग अधिक तेतीस सागरोपम को है। इसकौं वही कर्म स्थिति-कर्म-निषेक काल है। नामकर्म और गौत्रकर्म की बंध स्थिति जघन्य आठ मुहूर्त और उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम है । दो हजार वर्ष का अबाधा काल है । उस अबाधा काल की स्थिति को कम करने से शेष कर्म स्थिति-कर्म-निषेक होता है । अन्तराय कर्म का कथन ज्ञानावरणीय कर्म के समान जानना चाहिये ।
विवेचन-कर्म स्थिति द्वार-इसमें कमों की स्थिति का वर्णन किया गया है। साथ ही-उनका अबाधा काल भी बताया गया है । 'बाधृ लोडने' अर्थात् लोडन अर्थ वाली बाधुधातु से बाधा शब्द बना है । बाधा का अर्थ है कर्म का उदय । कर्म का उदय नहीं होना 'अबाधा' कहलाता है। अर्थात् जिस समय कर्म का बंध हुआ, उस समय से लेकर
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