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________________ ९५२ भगवती सूत्र-श. ६ उ. ३ वस्त्र और जीव के पुद्गलोपचय है। तीन विकलेन्द्रिय जीवों के वचन प्रयोग और काय प्रयोग, इन दो प्रयोगों से होते हैं । इस प्रकार सर्व जीवों के प्रयोग द्वारा कर्मों का उपचय होता है, किंतु स्वाभाविक रूप से नहीं होता। इस प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी जीवों के विषय में कहना चाहिये। ८प्रश्न-हे भगवन् ! वस्त्र के जो पुद्गलों का उपचय होता है, क्या वह सादि सान्त है, सादि अनन्त हैं, अनादि सान्त है, या अनादि अनन्त है ? ८ उत्तर-हे गौतम ! वस्त्र के पुद्गलों का जो उपचय होता है, वह सादि सान्त है, परन्तु सादि अनन्त, अनादि सान्त और अनादि अनन्त नहीं है। ९ प्रश्न-हे.भगवन् ! जिस प्रकार वस्त्र के पुद्गलोपचय सादि सान्त है, किन्तु सादि अनन्त, अनादि सान्त और अनादि अनन्त नहीं है, उसी प्रकार जीवों के कर्मोपचय भी सादि सान्त है, सादि अनन्त है, अनादि सान्त है, या अतादि अनन्त है ? " १ उत्तर-हे गौतम ! कितने ही जीवों के कर्मोपचय सादि सान्त हैं, कितने ही जीवों के कर्मोपचय अनादि सान्त है, और कितने ही जीवों के कर्मोपचय अनादि अनन्त है, परन्तु जीवों के कर्मोपचय सादि अनन्त नहीं हैं। १० प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? १० उत्तर-हे गौतम ! ईर्यापथिक बंध की अपेक्षा कर्मोपचय सादि सान्त हैं। भवसिद्धिक जीवों के कर्मोपचय अनादि सान्त है। अभवसिद्धिक जीवों के कर्मोपचय अनादि अनन्त है । इसलिये हे गौतम ! उपर्युक्त रूप से कथन किया गया है। विवेचन-वस्त्र द्वार-कपड़े के पुद्गलोपचय प्रयोग से (जीव के प्रयत्न से) और स्वाभाविक रूप से, इन दोनों प्रकार से होता है, किन्तु जीवों के कर्मोपचय प्रयोग से ही होता है। यदि ऐसा न माना जाय तो अयोगी अवस्था में भी जीवों को कर्म बन्ध का प्रसंग होगा । अतः जीवों के कर्मोपचय प्रयोग से ही होता है। यह कथन सयुक्तिक है । सादि द्वार-गमन मार्ग को 'ईर्यापथ' कहते हैं। ईर्यापथ से बंधने वाले कर्म को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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