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भगवती सूत्र - श. ६ उ ३ वस्त्र और जीव के पुद्गलोपचय
१० उत्तर - गोयमा ! इरियावहियबंधयस्म कम्मोवचए साइए सपवज्जवसिए, भवसिद्धियस्स कम्मोवचए अणाइए सपज्जवसिए, अभवसिद्धियस्स कम्मोवचए अणाइए अपज्जवसिए से तेणट्टेणं गोयमा !
कठिन शब्दार्थ- पोग्गलोवचए - पुद्गलों का उपचय - संग्रह, पओगसा प्रयोग से, वीससा - स्वाभाविक रूप से, साइए सपज्जवसिए आदि और अंत सहित, साइए अपज्जवसिएआदि युक्त अंत रहित अणाइए सपज्जवसिए - अनादि सपर्यवमित, अणाइए अपज्जबसिए - अनादि अपर्यवसित, ईरियावहियबंधस्स- इर्यापथिक ( गमनागमन) बंध की अपेक्षा, अभवसिद्धियस्स - जो मुक्त नहीं हो सकता हो उसके ।
भावार्थ - ५ प्रश्न - हे भगवन् ! वस्त्र में पुद्गलों का उपचय होता है, वह प्रयोग से ( पुरुष के प्रयत्न से ) होता है अथवा स्वाभाविक ?
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५ उत्तर - हे गौतम! प्रयोग से भी होता हे और स्वाभाविक रूप से भी होता है ।
६ प्रश्न - हे भगवन् ! जिस प्रकार प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से वस्त्र के पुद्गलों का उपचय होता है, तो क्या उसी प्रकार जीवों के भी प्रयोग से और स्वभाव से कर्म पुद्गलों का उपचय होता है ?
६ उत्तर - हे गौतम ! जीवों के जो कर्म पुद्गलों का उपचय होता है, वह प्रयोग से होता है, किन्तु स्वाभाविक रूप से नहीं होता है ।
७ प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
७ उत्तर - हे गौतम! जीवों के तीन प्रकार के प्रयोग कहे गये हैं। यथामनप्रयोग, वचनप्रयोग और कायप्रयोग । इन तीन प्रकार के प्रयोगों से जीवों के कर्मों का उपचय होता है। इसलिये जीवों के कर्मों का उपचय प्रयोग से होता है, स्वाभाविक रूप से नहीं । इस प्रकार सभी पञ्चेन्द्रिय जीवों के तीन प्रकार का प्रयोग होता है । पृथ्वीकायिकादि पांच स्थावर जीवों के एक काय प्रयोग से होता
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