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भगवती सूत्र -श. ६ उ. ३ वस्त्र और जीव के पुद्गलोपचय
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वाले को 'महावेदना वाला' कहा गया है । 'मन्त्रओ' का अर्थ मर्वतः अर्थात् सभी दिशाओं से अथवा मत्र प्रदेशों से कर्म के परमाणु संकलन रूप स बंधते हैं । बन्धन रूप से चय को प्राप्त होते हैं । 'निषेक'-कर्म पुद्गलों की रचना रूप से उपचय को प्राप्त होते हैं । अथवा बन्धन रूप से बन्धते हैं । निधत्त रूप से चय होते हैं और निकाचन रूप मे उपचय होते हैं।
वस्त्र का दृष्टान्त देकर यह बतलाया गया है कि-जिस प्रकार नवीन और साफ वस्त्र भी काम में लेने से और पुद्गलों के संयोग से मसोते सरीखा मलीन हो जाता है, उमी प्रकार कर्म पुद्गलों के संयोग से आत्मा भी दुरूप आदि से परिणत हो जाती है । जैसे मलीन वस्त्र भी पानी से धोकर शुद्ध किया जाने पर साफ हो जाता है, उसी प्रकार आत्मा भी कर्म पुद्गलों के विध्वंस होने मे मुखादि रूप से प्रशस्त बन जाती है ।
वस्त्र और जीव के पुद्गलोपचय
५ प्रश्न-वत्थस्म णं भंते ! पोग्गलोवचये किं पओगसा वीसमा ?
५ उत्तर-गोयमा ! पओगसा वि, वीससा वि ।
६ प्रश्न-जहा-णं भंते ! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए पओगसा वि, वीमसा वि तहा णं जीवाणं कम्मोवचए किं पओगसा, वीससा ?
६ उत्तर-गोयमा ! पओगसा, णो वीससा । ७ प्रश्न-मे केणटेणं ?
७ उत्तर-गोयमा ! जीवाणं तिविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहामणप्पओगे, वइप्पओगे, कायप्पओगे; इच्चेएणं तिविहेणं पओगेणं जीवाणं कम्मोवचये पओगसा, णो वीससा; एवं सव्वेसिं पंचिंदि
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