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________________ ९४८ भगवती सूत्र - श. ६ उ. ३ वेदना और निर्जरा में वस्त्र का दृष्टांत २ प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? २ उत्तर - हे गौतम ! जैसे कोई अहत ( अपरिभुक्त) जो नहीं पहना गया है) धौत ( पहन करके भी धोया हुआ ) तन्तुगत ( मशीन पर से तुरन्त उतरा हुआ) वस्त्र, अनुक्रम से काम में लिया जाने पर, उसके पुद्गल सर्वतः बन्धते हैं, सर्वतः चय होते हैं, यावत् कालान्तर में वह वस्त्र मसोता जैसा मैला और दुर्गन्ध युक्त हो जाता है। इसी प्रकार महाकर्म वाला जीव, उपर्युक्त रूप से यावत् असुखपने बारंबार परिणमता है । ३ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या अल्प कर्म वाले, अल्प क्रिया वाले, अल्प आश्रववाले और अल्प वेदना वाले जीव के सर्वतः पुद्गल भेदाते हैं ? सर्वतः पुद्गल छेदाते हैं ? सर्वतः पुद्गल विध्वंस को प्राप्त होते हैं ? सर्वतः पुद्गल समस्त रूप से विध्वंस को प्राप्त होते हैं ? क्या सदा निरन्तर पुद्गल भेदाते हैं ? सर्वतः पुद्गल छेदात हैं ? विध्वंस को प्राप्त होते हैं ? समस्त रूप से विध्वंस को प्राप्त होते हैं ? क्या उसकी आत्मा सदा निरन्तर सुरूपपने यावत् सुखपने और अदुःखपने बारंबार परिणमती है ? (पूर्व सूत्र में अप्रशस्त का कथन किया है, किंतु यहाँ सब प्रशस्त पदों का कथन करना चाहिये) । ३ उत्तर - हाँ, गौतम ! उपर्युक्त रूप से यावत् परिणमती है। ४ प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? ४ उत्तर - हे गौतम! जैसे कोई मलीन, पंकसहित ( मैल सहित ) और जसहित वस्त्र हो, वह वस्त्र क्रम से शुद्ध किया जाने पर और शुद्ध पानी से धोया जाने पर उस पर लगे हुए पुद्गल सर्वतः भेदाते हैं, छेदाते हैं, यावत् परिणाम को प्राप्त होते हैं । इसी तरह अल्पक्रिया वाले जीव के विषय में भी पूर्वोक्त रूप से कथन करना चाहिये । विवेचन - उपरोक्त द्वारों में से प्रथम बहुकर्मद्वार का कथन किया जाता हैं । जिसके कर्मों की स्थिति आदि लम्बी हो, उसे 'महाकर्म वाला' कहा गया है। जिसके की आदि क्रियाएं महान् हों उसको यहां 'महाक्रियावाला' कहा गया है । कर्म बंध के हेतुभूत मिथ्यात्व आदि जिसके महान् हों उसको 'महाआश्रव वाला' कहा गया है और महापीड़ा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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