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________________ भगवती सूत्र-ग. ५ उ. ९ प्रकाश और अन्धकार ८ प्रश्न-हे भगवन ! इसका क्या कारण है ? ८ उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमार देवों के शुभ पुद्गल है और शुभ पुद्गल परिणाम है, इसलिये उनके उद्योत है, अन्धकार नहीं। इसी प्रकार स्तनित कुमारों तक कहना चाहिये। जिस प्रकार नरयिक जीवों का कथन किया, उसी प्रकार पृथ्वीकाय से लेकर तेइन्द्रिय जीवों तक का कथन करना चाहिये। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! चौरिन्द्रिय जीवों के उद्योत है, या अन्धकार है ? ९ उत्तर-हे गौतम ! चौरिन्द्रिय जीवों के उद्योत भी है और अन्धकार भी है। १० प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? १० उत्तर-हे गौतम ! चौरिन्द्रिय जीवों के शुभ और अशुभ पुद्गल होते हैं तथा शुभ और अशुभ परिणाम होता है, इसलिये ऐसा कहा जाता है कि उनमें उद्योत भी है और अन्धकार भी है। इस प्रकार यावत् मनुष्यों तक कहना चाहिये । जिस प्रकार असुरकुमारों का कहा, उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों के विषय में भी कहना चाहिये। विवेचन-पुद्गलों का अधिकार होने से यहाँ भी पुद्गलों का कथन किया जाता है। दिन में शुभ पुद्गल होते हैं । इसलिये सूर्य की किरणों के सम्बन्ध से दिन में शुभ पुद्गलों का परिणाम होता है और रात्रि में अशुभ पुद्गल होते है, अतएव अशुभ पुद्गल परिणाम होता है। नरक में पुद्गलों की शुभता के निमित्तभूत सूर्य की किरणों का प्रकाश नहीं है, इसलिये नरकों में अन्धकार है। असुरकुमार देवों के रहने के स्थानादि की भास्वरता के कारण वहाँ शुभ पुद्गल हैं। अतएव उद्योत है। पांच स्थावर, बेइन्द्रिय और तेइन्द्रिय जीव, यद्यपि इस क्षेत्र में हैं और यहां सूर्य की किरणों आदि का सम्पर्क भी है, तथापि उनमें जो अन्धकार का कथन किया गया है, इसका कारण यह है कि उनमें चक्षुरिन्द्रिय नहीं होती. इसलिये वे देखने योग्य पदार्थों को नहीं देख सकते । इसलिये उनके शुभ पुद्गलों का कार्य न होने से अशुभ पुद्गल कहे गये हैं। अतएव अन्धकार होता है । चौरिन्द्रिय जीवों में चक्षुरिन्द्रिय होने से रवि किरणादि का जब सद्भाव हो, तब दृश्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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