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भगवती सूत्र - श ५ उ. ८ जीवों की हानि और वृद्धि
में बारह मास का अवस्थान काल है ।
जिस प्रकार नरयिक जीवों के विषय में कहा है, उसी प्रकार असुरकुमार बढ़ते हैं, घटते हैं । जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अड़तालीस मुहूर्त्त तक अवस्थित रहते हैं । इसी प्रकार दस ही प्रकार के भवनपति देवों के विषय में कहना चाहिए ।
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एगिंदिया बड्ढं ते वि, हायंति वि, अवट्टिया वि । एएहिं तिहि वि जहणेणं एक्कं समयं, उक्को सेणं आवलियाए असं खेजड़
भागं ।
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बेइंदिया वति, हायंति, तहेव, अवट्टिया जहण्णेणं एक्कं
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समयं उकोसेणं दो अंतोमुहुत्ता । एवं जाव - चउरिंदिया । अवसेसा सव्वे वदंति हायंति, तहेव, अवद्रियाणं णाणत्तं इमं तं जहा - संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं दो अंतोमुहुत्ता, गन्भवक्कंतियाणं चउव्वीसं मुहुत्ता, संमुच्छिममणुस्साणं अट्ठचत्तालीसं मुहुत्ता, गव्र्भवक्कंतियमणुस्साणं चउवीसं मुहुत्ता, वाणमंतरजोइससोहम्मी-साणेसु अट्ट चत्तालीसं मुहुत्ता, सणकुमारे अट्टारस राईदियाईचत्तालीस य मुहुत्ता, माहिंदे चउवीसं राइंदियाइंवीस य मुहुत्ता, बंभलोए पंचचत्तालीसं राहंदियाई, लंतए उई राहंदियाई, महासुक्के सर्द्वि राईदियसयं, सहस्सारे दो राईदियसयाई, आणयपाणयाणं संखेज्जा मासा, आरण- ऽच्चयाणं संखेजाई वासाई, एवं
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