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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ८ जीवों की हानि और वृद्धि मुहुत्ता । एवं मत्तसु वि पुढवीसु वदंति, हायंति-भाणियव्वा, णवरं-अवट्ठिएसु इमं णाणत्तं, तं जहा-रयणप्पभाए पुढवीए अडयालीसं मुहुत्ता, सक्करप्पभाए चउद्दस राइंदिया णं, वालुयप्पभाए मासो, पंकप्पभाए दो मासो, धूमप्पभाए चत्तारि मासा, तमाए अट्ट मामा,तमतमाए वारस मासा। असुरकुमारा वि वड्दति हायंति जहा णेरइया । अवट्ठिया जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अट्टचत्तालीसं मुहुत्ता । एवं दमविहा वि । कठिन शब्दार्थ-सव्वद्धं-सब काल । भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, कितने काल तक अवस्थित रहते हैं ? ७ उत्तर-हे गौतम ! सर्वाद्धा अर्थात् सब काल जीव, अवस्थित रहते हैं। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक कितने काल तक बढ़ते हैं ? ८ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक जीव, जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्य भाग तक बढ़ते हैं। जिस प्रकार बढ़ने का काल कहा है, उसी प्रकार घटने का काल भी कहना चाहिए। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीव, कितने काल तक अवस्थित रहते हैं ? ____९ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक जीव, जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक अवस्थित रहते हैं। इसी प्रकार सातों पश्वियों में बढ़ते हैं, घटते हैं। किन्तु अवस्थितों में इस प्रकार भिन्नता है-रत्नप्रभा पृथ्वी में ४८ महत, शर्कराप्रभा में चौदह अहोरात्रि, बालकाप्रभा में एक मास. पंकप्रभा में दो मास, धूमप्रभा में चार मास, तमःप्रभा में आठ मास और तमस्तमःप्रभा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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