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________________ ८८६ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ७ असुरकुमार आरंभी परिग्रही अणारंभा, अपरिग्गहा । ३१ प्रश्न-से केणटेणं ? ३१ उत्तर-गोयमा ! असुरकुमारा णं पुढविकायं समारंभति, जाव-तसकायं समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा परिग्गहिया भवंति, भवणा परिग्गहिया भवंति; देवा, देवीओ, मणुस्सा, मणुस्सीओ, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीओ परिग्गहिया भवंति; आसण-सयण-भंड-मत्तोचगरणा परिग्गहिया भवंति; सचित्ताऽचित्त-मीसियाई दवाइं परिग्गहियाई भवंति-से तेणटेणं तहेव; एवं जाव-थणियकुमारा। -एगिदिया जहा णेरइया । ___ भावार्थ-३० प्रश्न-हे भगवन् ! क्या असुरकुमार, आरम्भ और परिप्रह सहित हैं, या अनारम्भी और अपरिग्रही हैं ? ___३० उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमार, आरम्भ और परिग्रह सहित हैं, किन्तु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं। ३१ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? ३१ उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमार, पृथ्वीकाय यावत् त्रसकाय का समारंभ (वध) करते हैं। उन्होंने शरीर परिग्रहीत किये हैं, कर्म परिगहित किये हैं, भवन परिगृहीत किये हैं, देव, देवी, मनुष्य, मनुष्यिनी, तिर्यञ्च, तिर्यञ्चनी ये सब परिगृहीत किये हैं। आसन, शयन, भाण्ड, (मिट्टी के बर्तन)मात्रक, (कांसी के बर्तन) और उपकरण (लोहे की कड़ाही, कुड़छो आदि। परिगृहीत किये हैं। सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य परिगृहीत किये हैं। इसलिये वे आरंभ और परिग्रह सहित हैं, किन्तु अनारंभी और अपरिग्रही नहीं है। इसी प्रकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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