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________________ भगवती सूत्र - श ५ उ ७ असुरकुमार आरंभी परिग्रही रंभा णो अपरिग्गहा । २९ प्रश्न - से केणट्टेणं जाव - अपरिग्गहा ? २९ उत्तर-गोयमा ! णेरइया णं पुढविक्कायं समारंभंति, जावतसकार्य समारंभंतिः सरीरा परिग्गहिया भवंति कम्मा परिग्गहिया भवंति, सचित्ताऽचित्त- मीसियाई दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति - से तेणेणं तं चेव । कठिन शब्दार्थ-सारंभा - आरंभ सहित, सपरिग्गहा- परिग्रह सहित, उदाहु अथवा | भावार्थ - २८ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या नैरयिक आरम्भ और परिग्रह संहित हैं, या अनारम्भी और अपरिग्रही हैं ? २८ उत्तर - हे गौतम! नैरयिक आरम्भ और परिग्रह सहित हैं, किंतु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं । Jain Education International ८८५ २९ प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से वे आरम्भ और परिग्रह सहित है, किंतु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं ? २९ उत्तर - हे गौतम! नैरयिक पृथ्वीकाय यावत् सकाय का समारम्भ करते हैं । उन्होंने शरीर परिगृहीत किये हैं, कर्म परिगृहीत किये हैं, सक्ति, अचित्त और मिश्र द्रव्य परिगृहीत किये हैं । इसलिए नैरयिक आरम्भ सहित हैं, परिग्रह सहित हैं, किन्तु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं । असुरकुमार आरंभी परिग्रही ३० प्रश्न - असुरकुमारा णं भंते ! किं सारंभा पुच्छा ? ३० उत्तर - गोयमा ! असुरकुमारा सांरंभा सपरिग्गहा, णो For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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