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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ७ परमाणु पुद्गलादि के विभाग
जिस प्रकार छेदन भेदन के विषय में प्रश्नोत्तर किये गये हैं। उसी तरह से 'अग्निकाय के बीच में प्रवेश करता है'-इसी प्रकार के प्रश्नोत्तर एक परमाणु पुद्गल से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक कहने चाहिये, किन्तु अन्तर इतना है कि जहाँ उसमें सम्भावित छेदन भेदन का कथन किया है, वहां 'जलता है' इस प्रकार कहना चाहिये। इसी तरह 'पुष्कर-सम्वर्तक नामक महामेघ के मध्य में प्रवेश करता है'-यह प्रश्नोत्तर भी कहने चाहिये । किन्तु वहाँ सम्भावित छेदन भेदन के स्थान पर 'गीला होता है-भीगता है' कहना चाहिये। इसी तरह 'गंगा महा नदी के प्रतिश्रोत-प्रवाह में वह परमाणु पुद्गल आता है और प्रतिस्खलित . होता है।' और 'उदकावर्त का उदकबिन्दु में प्रवेश करता है और वहाँ वह परमाणु पुद्गलादि विनष्ट होता है। इस प्रकार प्रश्नोत्तर कहने चाहिये।
विवेचन-पुद्गल का अधिकार होने से यहाँ पुद्गल के सम्बन्ध में ही कहा जा रहा है। परमाणु पुद्गल, भेदित नहीं होता । अर्थात् उस के दो टुकड़े नहीं होते । इसी तरह वह छेद को प्राप्त नहीं होता, अर्थात् वह खण्ड खण्ड या चूर्ण रूप नहीं होता, उसमें शस्त्र भी प्रवेश नहीं करता । यदि ऐसा हो जाय, तो उसका परमाणुपना ही नष्ट हो जाय ।
जो अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तथाविध बादर परिणाम वाला होता है, वह छेद भेद को प्राप्त होता है और जो सूक्ष्म परिणाम वाला होता है, वह छेद भेद को प्राप्त नहींहोता। शेष विषय स्पष्ट ही है।
परमाणु पुद्गलादि के विभाग .
९ प्रश्न-परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं सअड्ढे, समझे, सपएसे; उदाहु अणड्ढे, अमज्झे, अपएसे ?
९ उत्तर-गोयमा ! अणड्ढे, अमझे, अपएसे; णो सअड्ढे, णो समझे, णो सपएसे।
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