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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ६ मृषावादी अभ्याख्यानी को बन्ध
करते हैं । इसलिये आचार्य, उपाध्याय के विषय में कथन किया जाता है ।
आचार्य और उपाध्याय अपने शिष्य वर्ग को सूत्र और अर्थ पढ़ाते हैं । इसलिये अखेद पूर्वक उन्हें स्वीकार करते हुए अर्थात् सूत्रार्थ पढ़ाने वाले और अखेद पूर्वक उन्हें संयम पालन में सहायता देने वाले आचार्य और उपाध्यायों में से कितने ही तो उसी भव में मोक्ष चले जाते हैं और कितने ही देवलोक में जाकर दूसरा मनुष्य भव धारण करके मोक्ष में चले जाते हैं, तथा कितने ही फिर देवलोक में जाकर तीसरा मनुष्य भव धारण करके मोक्ष प्राप्त करते हैं। किन्तु तीसरे मनुष्य-भव से अधिक भव नहीं करते।
मषावादी अभ्याख्यानी को बन्ध
१८ प्रश्न-जे णं भंते ! परं अलिएणं असम्भूएणं अब्भक्खाणेणं अभक्खाइ तस्स णं कहप्पगारा कम्मा कति ?
१८ उत्तर-गोयमा ! जे णं परं अलिएणं असंतवयणेणं अब्भक्खाणेणं अब्भक्खाइ तस्स णं तहप्पगारा चेव कम्मा कजंति, जत्थेव णं अभिसमागच्छइ तत्थेव णं पडिसंवेदेह तओ से पच्छा वेदेइ ।
® सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति छ
॥ पंचमसए छटो उद्देसो सम्मत्तो॥ कठिन शब्दार्थ-परं-दूसरे के लिए, अलिएणं-अलीक-झूठ बोलना, असन्मूएणं--असद्भूत-झूठा कथन, अब्भक्खाणेणं-अभ्याख्यान, कहप्पगारा--किस प्रकार के, तहप्पगारा-उसी प्रकार के ।
भावार्थ-१८ प्रश्न-हे भगवन् ! जो दूसरे को अलोकवचन, असद्भूत
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