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भगवती सूत्र - श. ५ उ ६ गृहपति को भाण्ड आदि से लगने वाली क्रिया
प्रतनु रूप में लगती है ।
यहां पर 'उपनीत' ( खरीददार को सौंपा गया और खरीददार द्वारा अपने यहां ले आया हुआ ) भाण्ड - किराणा, और अनुपनीत' ( खरीददार को नहीं सौंपा गया एवं खरीददार द्वारा नहीं उठाया गया, किन्तु विक्रेता के पास ही पड़ा हुआ ) यह दो प्रकार का भाण्ड होने से ये दो सूत्र कहे गये हैं अर्थात् 'उपनीत' और 'अनुपनीत' विषयक दो सूत्र हैं । इनमें से पहला सूत्र 'अनुपनीत' विषयक है और दूसरा सूत्र 'उपनीत' विषयक है । इसी प्रकार विषय में भी दो सूत्र कहने चाहिए। वे इस प्रकार हैं
धन
हे भगवन् ! किराणा बेचने वाले व्यापारी के पास से खरीददार ने किराणा खरीद लिया, किन्तु उसका मूल्य रूप धन विक्रेता को नहीं दिया गया। ऐसी स्थिति में उस खरीददार को उस धन सम्बन्धी आरम्भिकी आदि कितनी क्रियाएँ लगती है और विक्रेता को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
हे गौतम! उस खरीददार को उस धन सम्बन्धी आरम्भिकी आदि चार क्रियाएँ भारी प्रमाण में लगती हैं और मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् लगती है और कदाचित् नहीं लगती है । विक्रेता को से सब सम्भवित क्रियाएँ प्रतनु परिमाण में लगती हैं । क्योंकि जबतक धन नहीं दिया गया है, तब तक वह धन खरीददार का है एवं उसी के पास हैं, इसलिए उसे आरम्भिकी आदि क्रियाएँ भारी परिमाण में लगती हैं और वह धन विक्रेता का न होने से उसे वे क्रियाएँ हल्के परिमाण में लगती हैं। इस प्रकार यह तीसरा सूत्र पूर्वोक्त दूसरे सूत्र के समान समझना चाहिए। चौथा सूत्र इस प्रकार कहना चाहिए
हे भगवत् ! किराणा बेचने वाले किसी व्यापारी से किसी खरीददार ने किराणा खरीद लिया और उसका मूल्य रूप धन विक्रेता को दे दिया। ऐसी स्थिति में उस विक्रेता को उस धन सम्बन्धी आरम्भिकी आदि कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? और खरीददार को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
हे गौतम ! उपरोक्त स्थिति में विक्रेता को आरम्भिकी आदि चार क्रियाएँ भारी परिमाण में लगती है और मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् लगती है और कदाचित् नहीं लगती है । खरीददार को वे सत्र सम्भवित क्रियाएँ प्रतनु परिमाण में लगती हैं। क्योंकि ये सब क्रियाएँ धन हेतुक हैं। इसलिए मूल्य रूप धन चुका देने पर वह धन विक्रेता का है, इसलिए उसको वे क्रियाएँ भारी परिमाण में लगती हैं। मूल्य रूप धन चुका देने पर वह धन उस खरीददार का नहीं है, इसलिए उसको वे सब संभवित क्रियाएँ हल्के परिमाण
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