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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ५ अन्यतीथियों का मत-एवंभूत वेदना ८३३ : विवेचन-चौथे उद्देशक के अन्त में चौदह पूर्वधारी की महानुभावता का वर्णन किया गया है । वह उस महानुभावता के कारण छद्मस्थ होते हुए भी क्या सिद्ध हो सकता है ? इस आशंका के निवारण के लिये इस पांचवें उद्देशक के प्रारम्भ में कथन किया जाता है। इस विषय का कथन भगवती सूत्र के प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक में कर दिया गया है । वह सारा वर्णन यहाँ भी कहना चाहिये। यावत् उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधर अरिहन्त, जिन, केवली 'अलमस्तु' अर्थात् पूर्ण-ज्ञानी कहलाते हैं, यहाँ तक का वर्णन कहना चाहिये । यद्यपि यह वर्णन पहले आ चुका है, तथापि यहां पुनः कहने का कारण यह है कि वहां सामान्य रूप से कथन किया गया था और यहाँ उसी बात का कथन विशेष रूप से किया गया है। अतः किसी प्रकार का दोष नहीं है। . अन्यतीर्थियों का मत-एवंभूत वेदना २ प्रश्न-अण्णउत्थिया णं भंते ! एवं आइक्खंति; जाव परूवेंति सव्वे पाणा, सव्वे भया, सब्वे जीवा, सव्वे सत्ता एवंभूयं वेयणं वेदेति, से कहमेयं भंते ! एवं ? ....२ उत्तर-गोयमा ! जं णं ते अण्णउत्थिया एवं आइपखंति, जाव-वेदेति, जे ते एवं आहेसु, मिच्छा ते एवं आहेसु; अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि, जाव-परूवेमि अत्यंगइया पाणा, भूया, . जीवा, सत्ता एवंभूयं वेयणं वेदेति; अत्थेगइया पाणा, भूया, जीवा, सत्ता अणेवंभूयं वेयणं वेदेति । ३ प्रश्न-से केणटेणं अत्थेगइया-तं चेव उच्चारेयव्वं ? ३ उत्तर-गोयमा ! जे णं पाणा, भूया, जीवा, सत्ता जहा कडा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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