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भगवती सूत्र-श ५ उ. ४ चौदह पूर्वधर मुनि का सामर्थ्य
साथ जो 'सत्' विशेषण लगाया गया है, वह सत्ता का बोध कराने के लिये है । अथवा वीर्य प्रधान मानसादि योग युक्त आत्म द्रव्य को 'वीर्यसयोग स्वद्रव्य' कहते हैं । अथवा वीर्य प्रधान योग वाला और मन आदि वर्गणा से युक्त जो हो उसे 'वीर्य सयोग सद्रव्य' कहते हैं। वीर्य सयोग सद्रव्यता के कारण केवली भगवान् के अंग अस्थिर होते हैं । इसलिये उन्हीं आकाश प्रदेशों पर वे अपने अंगादि को भविष्यत्काल में नहीं रख सकते ।
चौदह पूर्वधर मुनि का सामर्थ्य
३८ प्रश्न-पभू णं भंते ! चउद्दसपुव्वी घडाओ घडसहस्सं, पडाओ पडसहस्सं, कडाओ कडसहस्सं, रहाओ रहसहस्सं, छत्ताओ छत्तसहस्सं, दंडाओ दंडसहस्सं, अभिणिव्वदेत्ता उवदंसेत्तए ?
३८ उत्तर-हंता, पभू। ३९ प्रश्न-से केणटेणं पभू चउद्दसपुव्वी, जाव-उवदंसेत्तए ?
३९ उत्तर-गोयमा ! चउद्दसपुग्विस्स णं अणंताई दव्वाई उकरियाभेएणं भिजमाणाई लद्धाइं पत्ताइं अभिसमण्णागयाइं भवंति, से तेणटेणं जाव उवदंसेत्तए।
___सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति *
॥ पंचमसए चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो॥ कठिन शम्वार्थ-पडाओ-पट-वस्त्र से, कडाओ-कट-सादरी-चटाई, अभिणिवत्ता-बनाकर, उबईसेत्तए-दिखा सकते हैं, उक्करियाभेएण-उत्करिका भेद सेपुद्गलों के खंड आदि भेद से।
भावार्थ--३८ प्रश्न--हे भगवन् ! क्या चौदह-पूर्वधारी (श्रुत केवली)
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