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________________ ८२८ भगवती सूत्र - श. ५ उ. ४ केवली के अस्थिर योग का ग्राहक (जाननेवाला) होता है । अनुत्तरोपपातिक देवों के विषय में अब दूसरी बात कही जाती हैं। अनुत्तरोपपातिक देव, उदीर्ण मोह नहीं हैं अर्थात् उनके वेद- मोहनीय का उदय उत्कट ( उत्कृष्ट ) नहीं है । वे क्षीण मोह भी नहीं हैं अर्थात् उनमें क्षपक श्रेणी का अभाव है । इसलिये वे क्षीण-मोह नहीं हैं, किन्तु वे उपशान्त मोह है अर्थात् उनमें किसी प्रकार के मैथुन का सद्भाव न होने से उनके वेद-मोहनी अनुत्कट है। इसलिये वे उपशान्त मोह हैं । किन्तु उपशम श्रेणी न होने के कारण वे सर्वथा उपशांत मोह नहीं हैं । केवली के अस्थिर योग ३६ प्रश्न - केवली णं भंते ! अस्सि समयंसि जेसु आगासपसेसु हत्थं वा पायं वा बाहं वा ऊरुं वा ओगाहित्ता णं चिट्ठति, पभ्रूणं केवली सेयकालंसि वि तेसु चेव आगासपएसेसु हत्थं वा जाव - ओगाहित्ता णं चिट्ठित्तए ? ३६ उत्तर - गोयमा ! णो इणट्टे समट्ठे ! ३७ प्रश्न - से केणट्टेणं भंते ! जाव - ओगाहित्ता णं चिट्ठित्तए ? ३७ उत्तर - गोयमा ! केवलिस्स णं वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए चलाई उवकरणारं भवति, चलोवकरणट्टयाए य णं केवली अरिंस समयंसि जेसु आगासपएसेसु हत्थं वा, जाव - चिट्ठह; णो णं पभू केवली सेयकालंसि वि तेसु चेव जाव - चिट्टित्तए, से तेणट्टेणं जावबुच्चइ - केवली णं अरिंस समयंसि जेसु आगासपएसेसु जाव-चिट्ठइ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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