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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ केवलो का ज्ञान
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पजताऽपजत्ता य; उवउत्ता अणुवउत्ता; तत्थ णं जे ते उवउत्ता ते जाणंति पासंति, से तेणटेणं तं चेव । ..
कठिन शब्दार्थ-अत्थेगइया-कुछ एक, अनन्तरोववण्णगा-तत्काल के उत्पन्न हुए, उवउत्ता-उपयोग युक्त, तत्थ-उनमें से ।
भावार्थ-२७ प्रश्न-हे. भगवन् ! केवलो भगवान् जिस प्रकृष्ट मन को और प्रकृष्ट वचन को धारण करते है, क्या उसको वैमानिक देव जानते और देखते हैं ?
२७ उत्तर-हे गौतम ! कितनेक देव जानते देखते हैं और कितनेक देव नहीं जानते और नहीं देखते हैं। - २८ प्रश्न-हे भगवन् ! कितनेक देव जानते देखते हैं और कितनेक देव नहीं जानते, नहीं देखते हैं, इसका क्या कारण है ?
२८ उत्तर-हे गौतम ! वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गये है, यथामायो मिथ्यादृष्टिपने उत्पन्न हुए और अमायो सम्यग्दृष्टिपने उत्पन्न हुए। इनमें से जो मायोमिथ्यादृष्टिपने उत्पन्न हुए हैं, वे नहीं जानते, नहीं देखते हैं, किन्तु जो अमायो सम्यग्दृष्टिपने उत्पन्न हुए हैं, वे जानते और देखते हैं।
'('अमायोसम्यग्दृष्टि वैमानिक देव जानते और देखते हैं, ऐसा कहने का क्या कारण है ?
हे गौतम ! अमायी सम्यग्दृष्टि देव दो प्रकार के कहे गये हैं । यथाअनन्तरोपपन्नक और परम्परोपपन्नक । इनमें जो अनन्तरोपपन्नक है, वे नहीं जानते और नहीं देखते हैं और जो परम्परोपपत्रक हैं, वे जानते और देखते हैं।
हे भगवन् ! 'परम्परोपपन्नक देव जानते और देखते हैं'-ऐसा कहने का क्या कारण है ?
हे गौतम ! परम्परोपपन्नक देव दो प्रकार के कहे गये हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । जो पर्याप्त हैं, वे जानते और देखते हैं और जो अपर्याप्त हैं, वे नहीं
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