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________________ भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ चमरेन्द्र की ऋद्धि ५४७ रूप में कहना चाहिए। इसके बाद अग्निभूति अनगार द्वारा कथित, भाषित, प्रज्ञापित और प्रतापत उपर्युक्त बात पर तृतीय गौतम वायुभूति अनगार को श्रद्धा, प्रतीति (विश्वास) और रुचि नहीं हुई। इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि न करते. हुए वे तृतीय गौतम वायुभूति अनगार, अपनी उत्थान शक्ति द्वारा उठे, उठकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास आये और यावत् उनकी पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले-हे भगवन् ! द्वितीय गौतम अग्निमति अनगार ने मुझ से इस प्रकार कहा, विशेष रूप से कहा, बतलाया और प्ररूपित किया कि'असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी बडी ऋद्धि वाला है, यावत् ऐसा महान् प्रभाव वाला है कि वहाँ चौतीस लाख भवनावासों पर स्वामीपना करता हुआ विचरता है (यहाँ उसको अग्रमहिषियों तक का पूरा वर्णन कहना चाहिए)। तो हे भगवन् ! यह बात किस प्रकार है ? ७ उत्तर-हे गौतम ! आदि इस प्रकार सम्बोधित करके श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने तीसरे गौतम वायुभूति अणगार से इस प्रकार कहा-हे गौतम ! द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार ने जो तुमसे इस प्रकार कहा, भाषित किया, बतलाया और प्ररूपित किया कि-हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महा ऋद्धि वाला है इत्यादि (उसकी अग्रमहिषियाँ तक का सारा वर्णन यहाँ कहना चाहिए) । हे गौतम ! यह बात सच्ची है । हे गौतम ! मैं भी इसी तरह कहता हूं, भाषण करता हूँ, बतलाता हूँ और प्ररूपित करता हूँ कि असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महाऋद्धि वाला है, इत्यादि उसको अग्रमहिषियों पर्यन्त सारा वर्णन रूप द्वितीय गमा (आलापक) यहाँ कहना चाहिए । इसलिए है गौतम ! द्वितीय गौतम अग्निभूति द्वारा कही हुई बात सत्य है । सेवं भंते ! सेवं भंते !! हे भगवन् ! जैसा आप फरमाते हैं वह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! जैसा आप फरमाते हैं वह इसी प्रकार है । ऐसा कह कर तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ने श्रमण 'भगवान् महावीर स्वामी को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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