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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. १ चमरेन्द्र की ऋद्धि गोयमा ! चमरे असुरिंदे, असुरराया महिड्ढीए, एवं तं चैव सव्वं जाव - अग्गमहिसीणं वत्तव्वया सम्मत्ता" सच्चे णं एसमट्टे, अहं पिणं गोयमा ! एवमाइक्खामि, भासामि, पण्णवेमि, परूवेंमि - एवं खलु गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया, जाव - महिड्ढीए, सो चेव बीइओ गमो भाणियव्वो, जाव- अग्गमहिसीओ, सच्चे. णं समट्ठे । ५४६ सेवं भंते ! सेवं भंते !! त्ति तच्चे गोयमे वाउभई अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव दोच्चे गोयमे अग्गभूइ अणगारे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता दोच्चं गोयमं अग्भूिई अणगारं वंदड़ णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता एयमहं सम्मं विणणं भुज्जो भुज्जो खामेह | कठिन शब्दार्थ - अट्ठवागरणं- अपृष्टव्याकरण - बिना पूछे उत्तर । यध्वं कना । अपरिसेसियं - बाकी कुछ नहीं रहे, एयमट्ठठं- इस अर्थ को, भुज्जोभुज्जो - बारबार, खामेइखमाता है - क्षमा मांगता है, वत्तव्वया वक्तव्यता, सम्मत्ता- -पूरी, कहमेयं - किस प्रकार | भावार्थ - ७ प्रश्न - हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' ऐसा कह कर द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार कर जहाँ तृतीय गौतम वायुभूति अनगार थे, वहाँ गये । वहाँ जाकर अग्निभूति अनमार ने वायुभूति अनगार से इस प्रकार कहाहे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महाऋद्धि वाला है । इत्यादि सारा वर्णन ( चमरेन्द्र सामानिक, त्रायस्त्रशक, लोकपाल और पटरानी देवियों तक का सारा वर्णन ) अपृष्ट व्याकरण के रूप में अर्थात् प्रश्न पूछे बिना ही उत्तर के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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