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________________ ८१० भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ दो देवों का भ. महावीर से मौन प्रश्न णमंसित्ता मणसा चेव सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा जावपज्जुवासंति। कठिन शब्दार्थ-महासग्गाओ-महासर्ग, मणसा चेव-मन से ही, एयारूवं -इस प्रकार वागरणं-व्याकरण-प्रश्न, सुस्सूसमाणा--सेवा करते हुए, अभिमुहा--संमुख होकर । ___ भावार्थ-उस काल उस समय में महाशक्र नाम के देवलोक से, महासर्ग नाम के महाविमान से, महाऋद्धि वाले यावत् महाभाग्यशाली दो देव, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास प्रादुर्भूत हुए (आये) । उन देवों ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को मन से ही वन्दना नमस्कार किया और मन से ही यह प्रश्न पूछा १५ प्रश्न-हे भगवन् ! आपके कितने सौ शिष्य सिद्ध होंगे यावत् समस्त दुःखों का अन्त करेंगे? १५ उत्तर-इसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने उन देवों के प्रश्न का उत्तर, मन द्वारा ही दिया कि "हे देवानुप्रियों ! मेरे सात सौ शिष्य सिद्ध होंगे। यावत् सभी दुःखों का अन्त करेंगे।" इस प्रकार मन द्वारा पूछे हुए प्रश्न का उत्तर, श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने उन देवों को मन द्वारा ही दिया। जिससे वे देव हर्षित, संतुष्ट यावत् प्रसन्न हृदय वाले हुए। फिर उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार किया । वन्दना नमस्कार करके मन से ही उनकी शुश्रूषा और नमन करते हुए सम्मुख होकर यावत् पर्युपासना करने लगे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे जाव-अदूरसामंते उड्ढं जाणू, जाव-विहरइ । तएणं तस्स भगवओ गोयमस्स झाणंत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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