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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ श्री अतिमुक्तक कुमार श्रमण मट्टियाए पालिं बंधइ, बंधित्ता ‘णाविया मे णाविया में णाविओ विव णावमयं पडिग्गहं उदगंसि कटु पव्वाहमाणे पव्वाहमाणे अभिरमइ, तं च थेरा अदक्खु, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी कठिन शब्दार्थ-अंतेवासी-समीप रहनेवाला -- शिष्य, महावुटिकायंसि-महा वर्षा, णिवयमाणंसि--होने पर, कक्खपडिग्गहरयहरणमायाए-कांख -बगल में, रजोहरण और पात्र लेकर, बहिया संपट्ठिए विहाराए-बाहर रही हुई विहार भूमि-स्थंडिल भूमि भे, वाहयं-छोटा नाला, णाविया मे-यह मेरी नौका है, पव्वाहमाणे -बहाता हुआ, अभिरमइ-खेलता है, थेरा-स्थविर, अद्दक्खू–देखा, उवागच्छंति--आये । भावार्थ-उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के शिष्य अतिमुक्तक नाम के कुमार श्रमण थे। वे प्रकृति से भद्र यावत् विनीत थे। वे अतिमुक्तक कुमार श्रमण किसी दिन महावर्षा बरसने पर अपना रजोहरण कांख (बगल) में लेकर तथा पात्र लेकर बाहर भूमिका (बडी शंका के निवारण के लिये) गये । जाते हुए अतिमुक्तक कुमार श्रमण ने मार्ग में बहते हुए पानी के एक छोटे नाले को देखा। उसे देखकर उन्होंने उस नाले के मिट्टी की पाल बांधी। इसके बाद जिस प्रकार नाविक अपनी नाव को पानी में छोड़ता है, उसी तरह उन्होंने भी अपने पात्र को उस पानी में छोड़ा, और 'यह मेरी नाव है, यह मेरी नाव है'-ऐसा कह कर पात्र को पानी में तिराते हुए क्रीड़ा करने लगे। अतिमुक्तक कुमार श्रमण को ऐसा करते हुए देखकर स्थविर मुनि उसे कुछ कहे बिना ही चले आये, और. श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आकर उन्होंने इस प्रकार पूछा;-- १४ प्रश्न-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी अहमुत्ते णाम कुमारसमणे से णं भंते ! अइमुत्ते कुमारसमणे काहिं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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