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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ श्री अतिमुक्तक कुमार श्रमण
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इस प्रकरण में गर्भ संहरण के चार प्रकार बतलाये हैं । यथा-(१) गर्भाशय में से गर्भ को लेकर दूसरी स्त्री के गर्भाशय में रखना । (२) गर्भाशय में से गर्भ को लेकर योनि द्वारा दूसरी स्त्री के गर्भाशय में रखना । (३) योनि द्वारा गर्भ को बाहर निकाल कर दूसरी स्त्री के गर्भाशय में रखना और (४) योनि द्वारा गर्भ को बाहर निकाल कर योनि द्वारा ही दूसरी स्त्री के गर्भाशय में रखना।
इन चार तरीकों में से गर्भसंहरण के लिए यहाँ तीसरा तरीका ही उपयोगी माना गया है । क्योंकि कच्चा (अधूरा) या पक्का (पूरा) कोई भी गर्भ स्वाभाविक रूप से योनि द्वारा ही बाहर आता है । यह लौकिक प्रथा सर्वविदित है । इसलिए देव ने भी इसी प्रथा का अनुसरण किया है । यद्यपि देव की शक्ति विचित्र है । वह किसी भी स्थान से गर्भ को बाहर निकाल कर अन्य स्त्री के गर्भ में रख सकता है, किन्तु देव ने सर्व साधारण में प्रचलित लौकिक प्रथा का ही अनुसरण किया है। .
देव सामर्थ्य विचित्र है। इस बात को बतलाने के लिए यह बतलाया गया है कि देव गर्भ को आबाधा अर्थात् किञ्चित् पीड़ा और विबाधा अर्थात् विशेष पीड़ा पहुँचाये बिना उस गर्भ के सूक्ष्म सूक्ष्म टुकड़े करके नख के अग्रभाग द्वारा, या रोम कूपों (छिद्रों) द्वारा गर्भ को बाहर निकाल सकता है और वापिस गर्भाशय में रख सकता है । इतना सब करते हुए भी गर्भ को किञ्चित् मात्र भी पीड़ा नहीं होने देता।
श्री अतिमुक्तक कुमार श्रमण
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स . अंतेवासी अइमुत्ते णामं कुमारसमणे पगइभदए, जाव-विणीए ।
तए णं से अइमुत्ते कुमारसमणे अण्णया कयाइं महावुट्टिकायंसि णिवयमाणंसि कक्खपडिग्गहरयहरणमायाए बहिया संपट्ठिए विहा- . राए । तएणं अइमुत्ते कुमारसमणे वाहयं वहमाणं पासइ, पासित्ता
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