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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ शक्रदूत हरिनैगोषी देव १३ प्रश्न-पभू णं भंते ! हरिणेगमेसी सक्कस्स णं दूए इत्थीगभं णहसिरंसि वा, रोमकूवंसि वा साहरित्तए वा, णीहरित्तए वा ? __१३ उत्तर-हंता पभू, णो चेव णं तस्स गम्भस्स किंचि वि आवाहं वा, विवाहं वा उप्पाएजा, छविच्छेदं पुण करेजा, ए मुहमं च णं साहरेज वा, णीहरेज वा । कठिन शब्दार्थ-हरी-इन्द्र, साहरइ-संहरण करता है, परामुसिय-स्पर्श करके, अव्वाबाहेणं-पीड़ा हुए बिना ही, निहरित्तए-निकालता है, छविच्छेदं-छविच्छेद-अवयव का छेद । भावार्थ-१२ प्रश्न-हे भगवन् ! इन्द्र का सम्बन्धी शक्रदूत हरिनंगमेषी देव जब स्त्री के गर्भ का संहरण करता है, तब क्या वह एक गर्भाशय से गर्भ को उठा कर दूसरे गर्भाशय में रखता है ? या गर्भ को लेकर योनि द्वारा दूसरी स्त्री के उदर में रखता है ? या योनि से गर्भ को बाहर निकाल कर दूसरी स्त्री के गर्भाशय में रखता है ? या योनि द्वारा गर्भ को पेट में से बाहर निकाल कर वापिस दूसरी स्त्री के पेट में उसकी योनि द्वारा रखता है ? . . १२ उत्तर-हे गौतम ! वह हरिनगमेषी देव, एक स्त्री के गर्भाशय में से गर्भ को लेकर दूसरी स्त्री के गर्भाशय में नहीं रखता, गर्भाशय से लेकर योनि द्वारा गर्भ को दूसरी स्त्री के पेट में नहीं रखता, योनि द्वारा गर्भ को बाहर निकाल कर वापिस योनि द्वारा गर्भ को पेट में नहीं रखता, परन्तु अपने हाथ द्वारा गर्भ स्पर्श करके उस गर्भ को कुछ भी पीडा न पहुंचाते हुए, योनि द्वारा बाहर निकाल कर दूसरी स्त्री के गर्भाशय में रखता है। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या शक्र का दूत हरिनगमेषी देव, स्त्री के गर्भ को नखान द्वारा या रोम कूप (छिद्र) द्वारा गर्भाशय में रखने में या गर्भाशय से निकालने में समर्थ है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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