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भगवती सूत्र-श. ५ उ. २ ओदन आदि के शरीर
त्रस जीवों के शरीर कहलाते हैं और जली हुई हड्डी, जला हुआ चमड़ा, जले हुए रोम और जले हुए सींग, खुर, नख, ये सब पूर्वभाव-प्रज्ञापना की अपेक्षा त्रस जीवों के शरीर कहलाते हैं, और पीछे शस्त्रातीत आदि हो जाने पर-'अग्नि जीवों के शरीर' कहलाते हैं।
- १८ प्रश्न-अह भंते ! इंगाले, छारिए, भुसे, गोमए-एए णं किंसरीरा इ वत्तव्वं सिया ?
१८ उत्तर-गोयमा ! इंगाले, छारिए, भुसे, गोमए-एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच एगिदियजीवसरीरप्पओगपरिणामिया वि, जाव-पंचिंदियजीवसरीरप्पओगपरिणामिया वि, तओ पच्छा सत्थाईया, जाव-अगणिजीवसरीरा इ वत्तव्वं सिया।
कठिन शब्दार्थ-इंगाले–अंगारा, छारिए-राख, भुसे-भूसा-घास, गोमए-गोबर ।
भावार्थ-१८ प्रश्न-हे भगवन् ! अंगार, राख, भूसा और गोबर (छाणा) ये सब, किन जीवों के शरीर कहलाते हैं ?
१८ उत्तर-हे गौतम ! अंगार, राख, भूसा और गोबर (छाणा) ये सब पूर्वभाव-प्रज्ञापना की अपेक्षा एकेन्द्रिय जीवों के शरीर हैं, और यावत् यथासंभव पंचेन्द्रिय जीवों के शरीर भी कहलाते हैं, शस्त्रातीत आदि हो जाने पर यावत् 'अग्नि जीवों के शरीर' कहलाते हैं।
- विवेचन-पहले प्रकरण में वायुकाय के सम्बन्ध में कथन किया गया है । अब वनस्पतिकाय आदि के शरीर के विषय में कथन किया जाता है। मदिरा में दो जाति के पदार्थ है-कठिन और प्रवाही । गुड़ आदि 'कठिन' पदार्थ है और पानी 'प्रवाही' पदार्थ है । जो कठिन पदार्थ है, वह पूर्वभाव-प्रज्ञापना अर्थात् पहले के द्रव्य की अपेक्षा वनस्पति का शरीर है, क्योंकि गुड़ की पूर्वावस्था वनस्पति रूप है । इसी तरह ओदन (चावल) की भी पूर्वावस्था वनस्पति रूप है । जब वह अग्नि रूप शस्त्र से जल कर पूर्व अवस्था को छोड़ देता है,
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