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________________ ७६८ भगवती सूत्र-श. ५ उ. १ लवण समुद्र में सूर्योदय wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwm जाते हैं. आयु और अवगाहना घटती जाती है. तथा उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम का क्रमशः ह्रास होना जाता है, उसे 'अवसपिणी' काल कहते हैं । इस काल में पुद्गलों के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श हीन होते जाते हैं । शुभ भाव घटते जाते हैं और अशुभ भाव बढ़ते जाते हैं । अवसर्पिणी काल दस कोडाकोड़ी सागरोपम का होता है। इसके छह विभाग होते हैं, जिन्हें 'आरा' कहते हैं। . उत्सपिणी काल-जिस काल में जीवों के मंहनन और संस्थान क्रमशः अधिकाधिक शुभ होते जाते हैं, आयु और अवगाहना बढ़ती जाती है तथा उत्थान, कर्म, बल वीर्य पुरुषकार और पराक्रम की वृद्धि होती जाती है, उसे 'उत्सर्पिणी' काल कहते हैं । जीवों की तरह इस काल में पुद्गलों के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श भी शुभ होते जाते हैं । अशुभतम भाव अशुभतर, अशुभ, शुभ, शुभतर होते हुए यावत् शुभतम हो जाते हैं । अवसर्पिणी काल में क्रमशः ह्रास होते हुए हीनतम अवस्था आजाती है और इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि होते हुए क्रमशः उच्चतम अवस्था आजाती है । यह काल भी दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है । इसके भी छह आरे होते है । लवण समुद्र में सूर्योदय १५ प्रश्न-लवणे णं भंते ! समुद्दे सूरिया उदीण पाईणमुग्गच्छ०?. १५ उत्तर-जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया सच्चेव सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुदस्स वि भाणियव्वा, णवरं-अभिलावो इमो णेयन्यो । जया णं भंते ! लवणे समुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ तं चेव जाव-तया णं लवणसमुद्दे पुरथिमपञ्चत्थिमे णं राई भवइ । एएणं अभिलावेणं णेयव्वं । ___ १६ प्रश्न-जया णं भंते ! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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