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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. १ हेमन्तादि ऋतुएँ और अयनादि समणाउसो ! जहा ओसप्पिणीए आलावओ भणिओ एवं उस्स. प्पिणीए वि भाणियव्वो। कठिन शब्दार्थ--हेमंताणं--हेमन्त ऋतु, गिम्हाणं--ग्रीष्म ऋतु, अयणे--अयन, जुएण-युग से, अवट्ठिए--अवस्थित-स्थिर । १२ प्रश्न-हे भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में हेमन्त ऋतु का प्रथम समय होता है, तब उत्तरार्द्ध में भी हेमन्त ऋतु का प्रथम समय होता है और जब उत्तरार्द्ध में इस तरह होता है, तब जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पूर्व पश्चिम में हेमन्त ऋतु का प्रथम समय अनन्तर पुरस्कृत समय में होता है ? इत्यादि। १२ उत्तर-हे गौतम ! इस विषयक सारा वर्णन वर्षा ऋतु के वर्णन के समान जान लेना चाहिए । इसी तरह ग्रीष्म ऋतु का भी वर्णन समझ लेना चाहिए । हेमन्त ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के प्रथम समय की तरह उनकी प्रथम आवलिका यावत् ऋतु पर्यन्त सारा वर्णन कहना चाहिए । इस प्रकार वर्षा ऋतु, हेमन्त ऋतु और ग्रीष्म ऋतु, इन तीनों का एक सरीखा वर्णन है । इसलिए इन तीनों के तीस आलापक होते हैं। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! जब जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिणार्द्ध में प्रथम 'अयन' होता है, तब उतरार्द्ध में भी प्रथम अयन होता है ? १३ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार 'समय' के विषय मे कहा, उसी प्रकार 'अयन' के विषय में भी कहना चाहिए। यावत् उसके प्रथम समय, अनन्तर पश्चात्कृत समय में होता है । इत्यादि सारा वर्णन कहना चाहिए। '. जिस प्रकार 'अयन' के विषय में कहा उसी प्रकार संवत्सर, युग, वर्षशत, वर्षमहल, वर्षशतसहस्र, पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनिकुरांग, अर्थनिकुर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शोर्षप्रहेलिका, पल्योपम और सागरोपम । इन सब के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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