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भगवती सूत्र-श. ५ उ. १ हेमन्तादि ऋतुएँ और अयनादि
दक्षिणार्द्ध में प्रारम्भ होनेवाली वर्षा ऋतु की शुरुआत की अपेक्षा अनन्तर भविष्यत्कालीन समय को यहाँ 'अनन्तर पुरस्कृत समय' कहा गया है।
पूर्व और पश्चिम महाविदेह में प्रारम्भ होने वाली वर्षा ऋतु के प्रारम्भ की अपेक्षा अनन्तर अतीतकालीन समय को यहां 'अनन्तर पश्चात्कृत समय' कहा गया है ।
समय से लेकर मुहर्त तक काल के सात भेद हैंसमय-काल के सबसे छोटे भाग को-जिसका दूसरा भाग न हो सके–'समय' कहते हैं। आवलिका-असंख्यात समय की एक 'आवलिका' होती है ।
उच्छ्वास-निःश्वास-संख्यात आवलिकाओं का एक उच्छ्वास होता है और इतनी ही आवलिकाओं का एक निःश्वास होता है।
आनप्राण-एक उच्छ्वास और निःश्वास मिल कर एक - 'आनप्राण' अथवा 'प्राण' कहलाता है।
स्तोक-सात आनप्राण अथवा प्राणों का एक 'स्तोक' होता है। लव-सात स्तोकों का एक 'लव' होता है ।
मुहूर्त-७७ लव अर्थात् ३७७३ श्वासोच्छ्वास का एक मुहूर्त होता है । एक मुहूर्त में दो घड़ी होती है । एक घड़ी चौबीस मिनिट की होती है।
तीस मुहूर्त का एक अहोरात्र होता है । पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष होता है । दो पक्ष का एक मास होता है । दो मास की एक ऋतु होती है ।
हेमन्तादि ऋतुएँ और अयनादि
१२ प्रश्न-जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हेमंताणं पढमे समए पडिवज्जइ० ? ___१२ उत्तर-जहेव वासाणं अभिलावो तहेव हेमंताण वि, गिम्हाण वि भाणियन्वो जाव-उऊए; एवं तिण्णि वि, एएसं तीसं आलावगा भाणियव्वा।
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