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भगवती सूत्र - श. ५ उ. १ सूर्य का उदय अस्त होना
चन्द्र सम्बन्धी वर्णन है यह वर्णन चम्पा नगरी में किया गया था। इस प्रकार पांचवें शतक के ये दस उद्देशक हैं ।
विवेचन - चौथे शतक के अन्त में लेश्याओं सम्बन्धी कथन किया गया है, इसलिये अब लेश्यावाले जीवों के सम्बन्ध में कुछ कथन किया जाय तो उचित ही है । इसलिये इस पांचवें शतक मे प्रायः लेश्यावाले जीवों के सम्बन्ध में निरूपण किया गया है । इस प्रकार चौथे और पांचवें शतक का यह परस्पर सम्बन्ध है । इस शतक में दस उद्देशक हैं । जिन के विषयों का वर्णन करने वाली गाथा का सामान्य अर्थ ऊपर दिया गया है । इन दस उद्देशकों में से पहला सूर्य सम्बन्धी उद्देशक और दसवां चन्द्र सम्बन्धी उद्देशक है । इन दोनों उद्देशकों का कथन चंपानगरी में हुआ था ।
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तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था । वष्णओ । तीसे णं चंपाए णयरीए पुण्णभद्दे णामं चेहए होत्था । वण्णओ । सामी समोसढे जाव - परिसा पडिगया ।
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तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयमगोत्ते णं जाव एवं वयासी
१ प्रश्न - जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उदीण - पाईणमुग्गच्छ पाईण- दाहिणमागच्छंति, पाईण- दाहिणमुग्गच्छ दाहिणपडीणमागच्छंति, दाहिण -पडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीणमागच्छंति, पडीणउदीणमुग्गच्छ उदीचिपाईणमागच्छंति ?
१ उत्तर - हंता, गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उदीणपाईणमुग्गच्छ जाव - उदीचि - पाईणमागच्छति ।
२ प्रश्न - जया णं भंते! जंबूद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे दिवसे भव,
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