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शतक ५
उद्देशक १
सूर्य का उदय अस्त होना
चंप-रवि अणिल गंठिय सद्दे छउमाऽऽउ एयण णियंठे, रायगिहं चंपा-चंदिमा य दस पंचमम्मि सए । कठिन शब्दार्थ--गंठिय--जालग्रंथी, अणिल--वायु, एयण--कम्पन ।
भावार्थ-अब पांचवां शतक प्रारम्भ होता है । इसमें दस उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में सूर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर हैं। ये प्रश्नोत्तर चंपानगरी में हुए थे। दूसरे उद्देशक में वायु सम्बन्धी वर्णन हैं। तीसरे उद्देशक में जालग्रन्थि का उदा. हरण देकर वर्णन किया गया है। चौथे उद्देशक में शब्द सम्बन्धी प्रश्नोत्तर है। पांचवें उद्देशक में छद्मस्थ सम्बन्धी वर्णन है। छठे उद्देशक में आयुष्य सम्बन्धी, सातवें उद्देशक में पुद्गलों के कंपन सम्बन्धी, आठवें उद्देशक में निर्ग्रन्थि-पुत्र अनगार सम्बन्धी, नवमें उद्देशक में राजगृह सम्बन्धी और दसवें उद्देशक में
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