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भगवती सूत्र--श. ४ उ. ९ नरयिक ही नरक में जाता है
शतक ४ उद्देशक
नरयिक ही नरक में जाता है
१ प्रश्न-णेरइए णं भंते ! णेरइएसु उववजइ, अणेरइए णेरइ. एसु उववजइ ?
१ उत्तर-पण्णवणाए लेस्सापए तईओ उद्देसओ भाणियव्वो, जाव-णाणाई।
॥चउत्थसए णवमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-गाणाई-ज्ञानों तक ।
भावार्थ-१प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जो नरयिक है वह नरयिकों में उत्पन्न होता है ? या जो अनरयिक है, वह नरयिकों में उत्पन्न होता है ?
१ उत्तर-हे गौतम ! प्रज्ञापना सूत्र के लेश्यापद का तीसरा उद्देशक यहां कहना चाहिए और वह ज्ञानों के वर्णन तक कहना चाहिए।
विवेचन-पहले के उद्देशकों में देवों सम्बन्धी वर्णन किया गया है। अब इस नववें उद्देशक में नरयिक जीवों का वर्णन किया जाता है, क्योंकि जिस प्रकार देवों के वैक्रिय शरीर होता है, उसी प्रकार नरयिक जीवों के भी वैक्रिय शरीर होता है । इसलिए देवों के वाद नैरयिक जीवों की वक्तव्यता कहना ठीक ही है ।
यहाँ नैरयिकों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रश्न करनेपर प्रज्ञापना सूत्र के सतरहवें लेश्या पद के तीसरे उद्दशक का अतिदेश किया गया है । वह इस प्रकार है--
प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नैरयिक ही नरयिकों में उत्पन्न होता है, या अनैरयिक नरयिकों में उत्पन्न होता है ?
उत्तर-हे गौतम ! नरयिक ही नैरयिकों में उत्पन्न होता है, किन्तु अनैरयिक, नैरयिकों
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