SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - ग. ४. ५-८ लोकपाल की राजधानियाँ कठिन शब्दार्थ - रायहाणीसु - राजधानियों में, भाणियव्वा - कहना चाहिए | भावार्थ - १ - राजधानियों के विषय में ऐसा समझना चाहिए कि जहाँ एक एक राजधानी का वर्णन समाप्त होता है, वहाँ एक एक उद्देशक पूर्ण हुआ समझना चाहिए । इस तरह से चारों राजधानियों के वर्णन में चार उद्देशक पूर्ण होते हैं । इस तरह पांचवें से लेकर आठवें उद्देशक तक चार उद्देशक पूर्ण हुए, यावत् वरुण महाराज ऐसी महाऋद्धि वाला है । ७४३ विवेचन-राजधानियों के सम्बन्ध में चार उद्देशक कहने चाहिए। वे इस प्रकार हैंप्रश्न – हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल सोम महाराज की सोमा नामक राजधानी कहाँ है ? Jain Education International हे गौतम! सोमा राजधानी सुमन नामक महाविमान के बराबर नीचे है । इत्यादि सारा वर्णन जीवाभिगम सूत्र में कथित राजधानी के वर्णन के समान है । इस प्रकार एक एक राजधानी के सम्बन्ध में एक एक उद्देशक कहना चाहिए। इस तरह पांचवें से लेकर आठवें उद्देशक तक चार उद्देशकों में चार राजधानियों का वर्णन है । 'द्वीपसागर प्रज्ञप्ति' ग्रंथ की संग्रहणी गाथाओं में बतलाया है कि- शकेन्द्र और ईशानेन्द्र के सोम आदि लोकपालों की, प्रत्येक की चार चार राजधानियाँ ग्यारहवें कुण्डलवर द्वीप में हैं, तथा वह पर्वत, उसकी ऊँचाई, लम्बाई, चौड़ाई आदि का वर्णन किया है। कुण्डलवर द्वीप में जिन नगरियों का वर्णन हैं, वे नगरियाँ भिन्न हैं और यहां जो राजधानियां बतलाई गई है, वे उनसे भिन्न हैं । जिस प्रकार शकेन्द्र और ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों की नगरियाँ नन्दीश्वर द्वीप में भी हैं और कुण्डलवर द्वीप में भी हैं, उसी प्रकार सोम आदि लोकपालों की नगरियों के विषय में भी समझना चाहिए । ॥ इति चौथे शतक का उद्देशक पांच, छह, सात, आठ समाप्त ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy