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भगवती सूत्र - श. ३ उ. ६ चमरेन्द्र के आत्मरक्षक.
लिये हर समय हाथ में शस्त्र लेकर खड़े रहते हैं । जिस प्रकार यहाँ स्वामी की रक्षा लिये सेवकजन, (अंगरक्षक आदि ) वस्त्रादि से सज्जित होकर शस्त्रादि से सन्नद्ध बद्ध होकर सेवा में तत्पर रहते हैं, उसी प्रकार वे आत्मरक्षक देव भी बराबर सजधज कर बख्तर आदि पहन कर हाथ में धनुष आदि शस्त्र लेकर, अपने स्वामी की रक्षा में दत्तचित होकर खड़े रहते हैं ।
इस प्रकार आत्मरक्षक देवों सम्बन्धी सारा वर्णन यहां जानलेना चाहिये। जिस प्रकार चमरेन्द्र के आत्मरक्षक देवों का वर्णन किया है, उसी तरह सब इन्द्रों के आत्मरक्षक देवों का कथन करना चाहिये। उनकी संख्या इस प्रकार है
चउसट्ठी सट्ठी खलु छच्च सहस्साओ असुरवज्जाणं । सामाणिया उ एए चउग्गुणा आयरक्खाओ ||
चउरासी असीई बावर्त्तारि सत्तरि य सट्ठी य ।
पण्णा चत्तालीसा तीसा वीसा दस सहस्स ति ॥
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अर्थ — चमरेन्द्र के ६४ हजार सामानिक देव हैं । बलीन्द्र के ६० हजार सामानिक देव हैं। बाकी भवनपति देवों के शेष इन्द्रों के प्रत्येक के छह, छह हजार सामानिक देव हैं। शक्रेन्द्र के ८४ हजार सामानिक देव हैं। ईशानेन्द्र के ८० हजार, सनत्कुमारेन्द्र के ७२ हजार, माहेन्द्र के ७० हजार, ब्रह्मेन्द्र के ६० हजार, लान्तकेन्द्र के ५० हजार, शुक्रेन्द्र के ४० हजार, सहस्रारेन्द्र के ३० हजार, प्राणतेन्द्र के २० हजार और अच्युतेन्द्र के १० हजार सामानिक देव हैं । सामानिक देवों से चार गुणा आत्मरक्षक देव होते हैं ।
सेवं भंते ! सेवं भंते !
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॥ इति तीसरे शतक का छठा उद्देशक समाप्त ॥
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