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________________ ७०६ भगवती सूत्र-श. ३ उ. ६ चमरेन्द्र के आत्मरक्षक चमरेन्द्र के आत्म-रक्षक १६ प्रश्न-चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररण्णो कह आयरक्खदेवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? १६ उत्तर-गोयमा ! चत्तारि चउसट्टीओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं णं आयरक्खा वण्णओ जहा रायप्पसेणइजे एवं सव्वेसि इंदाणं जस्स जत्तिआ आयरक्खा ते भाणियव्वा । -सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। कठिन शब्दार्थ-आयरक्खा-आत्मरक्षक, जत्तिआ–जितने । भावार्थ-१६ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के कितने हजार आत्मरक्षक देव हैं ? . : १६ उत्तर-हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के २,५६,००० दो लाख छप्पन हजार आत्मरक्षक देव हैं। यहाँ आत्मरक्षक देवों का वर्णन समझना चाहिये और जिस इन्द्र के जितने आत्मरक्षक देव हैं। उन सब का वर्णन करना चाहिये। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। ऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं। विवेचन-पहले के प्रकरण में विकुर्वणा सम्बन्धी वर्णन किया गया है। अब विकुर्वणा करने में समर्थ देवों के सम्बन्ध में कथन किया जाता है । जो देव शस्त्र लेकर इन्द्र के चौतरफ खड़े रहते हैं, वे 'आत्मरक्षक' कहलाते हैं । यद्यपि इन्द्र को किसी प्रकार का कष्ट या अनिष्ट होने की संभावना नहीं है, तथापि आत्मरक्षक देव, अपना कर्तव्य पालन करने के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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