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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. ६ मिथ्यादृष्टि की विकुर्वणा वयवग्गे; णो खलु एस महं वीरियलद्धी, वेडव्वियलद्धी, विभंगणाणलडी, इड्ढी, जुत्ती, जसे, बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे लधे पत्ते, अभिसमण्णागए; से से दंसणे विवच्चासे भवइ, से तेणट्टेणं जाव - पासइ ? कठिन शब्दार्थ - - तहाभावं -- -- तथा भाव - यथार्थ रूप, अण्णहाभावं - - अन्यथा भावविपरीत रूप, विवच्चासे--विपरीत, अंतरा-बीच में, जणवयवग्गे - जनपद - वर्ग । भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! में राजगृह नगर रहा हुआ मिथ्यादृष्टि और मायी भावितात्मा अनगार, वीर्यलब्धि से वैक्रियलब्धि से और विभंगज्ञान लब्धि से वाणारसी नगरी की विकुर्वणा करके क्या तद्गत रूपों को जानता और देखता है ? ६९९ १ उत्तर - हाँ, गौतम ! वह उन रूपों को जानता और देखता है । २ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या वह तथाभाव ( यथार्थ रूप ) से जानता देखता है, या अन्यथाभाव (विपरीत रूप ) से जानता देखता है ? २ उत्तर - हे गौतम ! वह तथाभाव से नहीं जानता है और नहीं देखता है, किन्तु अन्यथा भाव से जानता और देखता है । ३. प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा किस भाव से नहीं जानता और नहीं देखता, देखता है ? Jain Education International कारण से कहा जाता है कि वह तथाकिन्तु अन्यथा भाव से जानता और ३ उत्तर - हे गौतम! उस साधु के मन में इस प्रकार विचार होता है कि वाराणसी में रहे हुए मैंने राजगृह नगर की विकुर्वणा की है और विकुर्वणा करके तद्गत अर्थात् वाणारसी के रूपों को जानता और देखता हूँ, इस प्रकार उस का दर्शन विपरीत होता है । इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि वह तथा भाव से नहीं जानता नहीं देखता, किन्तु अन्यथा भाव से जानता देखता है । ४ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या वाणारसी में रहा हुआ मायी मिथ्यादृष्टि For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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